किसी भी परिस्थिति में "सत्य" और "धर्म" पर सदा अडिग रहें। जीवन में कैसी भी दुःख और कष्टों से भरी परिस्थिति हो, उसमें सत्य का त्याग न करें, और धर्म पर अडिग रहें। रामायण में भगवान श्रीराम और भगवती सीताजी; महाभारत ग्रंथ में वर्णित -- पांडवों-द्रोपदी, नल-दमयंती, व सावित्री-सत्यवान को प्राप्त हुए कष्ट यही सत्य सिखाते हैं कि जीवन के उद्देश्य "पूर्णता" को प्राप्त करने के लिए कष्ट उठाने ही पड़ते हैं।
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सोने को शुद्ध करने के लिए उसे तपाना पड़ता है, वैसे ही कष्ट, दुःख और पीड़ायें हमें अधिक समझदार बनाती हैं। व्यावहारिक जीवन में मैंने देखा है कि जिन लोगों ने अपने बचपन में अभाव और दुःख देखे, उन्होने जीवन में अधिक संघर्ष किया और प्रगति की। जिन को बचपन से ही सारे विलासिता के साधन मिले, वे जीवन में कुछ भी सार्थक नहीं कर पाये।
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"जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल।
ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल।
विषमता की पीडा से व्यक्त, हो रहा स्पंदित विश्व महान।
यही दुख-सुख विकास का सत्य, यही भूमा का मधुमय दान।" (जयशंकर प्रसाद)
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कष्ट और पीड़ाओं में ही व्यक्ति परमात्मा को याद करता है। ईश्वर-लाभ ऐसे ही सुख से बैठे-बैठाये नहीं मिलता। उसके लिए कठोर साधना करनी पड़ती है और कष्ट भी उठाने पड़ते हैं। हम सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते रहें, चाहे कितने भी कष्ट उठाने पड़ें। अंत में ईश्वर की प्राप्ति तो निश्चित है ही। ॐ तत्सत् !!
१ मई २०२१
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