हनुमान का अर्थ -- अपने मान को नष्ट करना है। जिस ने अपने अहं यानि अभिमान को नष्ट कर दिया है, वही हनुमान है। भक्ति और सेवा के क्षेत्र में हनुमान जी हम सब के आदर्श हैं। भक्ति और सेवाभाव हो तो हनुमान जी जैसा हो। एक बार ध्यान करते-करते बड़ा आनंददायक अनुभव हुआ जिसमें लगा कि मेरा सारा शरीर जल कर भस्म हो गया है, सिर्फ मेरुदंड ही बचा है, और कुछ भी नहीं है। मेरुदंड में भी सिर्फ सुषुम्ना नाड़ी ही बची थी। अचानक हनुमान जी का स्मरण हुआ और वे मूलाधार चक्र में प्रकट हुये और बड़ी शान से सभी चक्रों को पार करते-करते सहस्त्रार तक पहुँच गए। वहाँ कुछ देर रुक कर भगवान को प्रणाम कर के सुषुम्ना मार्ग से बापस नीचे आये और बिना रुके फिर बापस ऊपर चले गए। पाँच-छः बार उन्होने इस तरह की परिक्रमा की और अचानक ही बचा-खुचा सब कुछ जलाकर भस्म कर दिया, और चले गए। अब न तो मेरा शरीर था, न मेरुदंड, सहस्त्रार भी नहीं। कुछ भी नहीं बचा था। सब कुछ जलकर भस्म हो गया था।
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