बिना भक्ति के भगवान नहीं मिल सकते। अन्य साधन भी तभी सफल होते हैं, जब ह्रदय में भक्ति होती है। "मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा, किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।" जीवन का हर अभाव एक रिक्त स्थान है, जिसकी पूर्ति भगवान की भक्ति से ही हो सकती है। भक्ति-सूत्रों में भक्ति को परमप्रेम कहा गया है। प्रेम हमारा स्वभाव है। अतः भक्ति हमारा स्वभाव है।
निरंतर समष्टि के कल्याण की कामना, ऊर्ध्वगामी चेतना, और हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर भरा हुआ प्रेम -- ये ही भक्त होने के लक्षण हैं।
जैसे सारी नदियाँ महासागर में गिरती हैं, वैसे ही हमारे सारे विचार भगवान तक पहुँचते हैं। हमारा हर विचार हमारा कर्म है, जिसका फल मिले बिना नहीं रहता।
भगवान् से प्रेम करेंगे तो उनकी सृष्टि भी हमसे प्रेम करेगी। जैसा हम सोचेंगे, वैसा ही वही कई गुणा बढ़कर हमें मिलेगा।
सब में सब के प्रति प्रेमभाव हो, यही मेरी प्रार्थना भगवान से है।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
८ जून २०२१
परमात्मा को स्मृति में रखते हुए अपने हर कार्य का साक्षी और कर्ता बनाएँ। यह हमारा स्वधर्म है।
ReplyDeleteगीता में दिए भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार सदा भगवान का अनुस्मरण करते हुए अपना कर्मयोग करते रहें। हर परिस्थिति में निर्भय और सत्यनिष्ठ रहें। गीता और उपनिषदों को ठीक से समझें तो हमें अपनी मानसिक पृष्ठभूमि में सदा निरंतर यथासंभव ओंकार का स्मरण करने का आदेश मिला हुआ है। हमारे सबसे बड़े शत्रु -- अहंकार और लोभ है, जिन से मुक्ति ओंकार के निरंतर मानसिक श्रवण और स्मरण से ही हो सकती है। अन्य किसी मार्ग का मुझे ज्ञान नहीं है।
हरिः ॐ तत्सत् !