Wednesday, 9 June 2021

श्रीमद्भगवद्गीता मेरा ही नहीं, सारे भारत का और हम सबका प्राण है ---

 श्रीमद्भगवद्गीता मेरा ही नहीं, सारे भारत का और हम सबका प्राण है ---

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श्रीमद्भगवद्गीता -- हमारा प्राण है, कोई धार्मिक ग्रंथ मात्र नहीं। जब तक गीता का ज्ञान हमारे हृदय में, और आचरण में है, तब तक भारत को और सनातन धर्म को कोई नष्ट नहीं कर सकता। गीता का ज्ञान ही सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण करेगा।
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गीता में साधकों के लिए भगवान ने स्वयं को ही हमारी आत्मा, उत्पत्ति, जीवन, और मृत्यु का कारण बताया हैं। उन्होनें स्वयं को सभी इंद्रियों में मन बताया है, जिसे हम यदि भगवान को ही बापस निरंतर समर्पित करते रहें, तो हमारा कल्याण होगा। उन्होने स्वयं को सभी प्राणियों में चेतना स्वरूप जीवन-शक्ति, यज्ञों में जपयज्ञ, सभी अक्षरों में ओंकार, और सभी को धारण करने वाला विराट स्वरूप बताया है।
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गीता में वे कहते हैं कि जो पुरुष अन्तकाल में (शरीर की मृत्यु के समय) मेरा ही स्मरण करता हुआ शारीरिक बन्धन से मुक्त होता है, वह मेरे ही भाव को, यानि मुझे (विष्णु के परम तत्त्व को) ही प्राप्त होता है। अंत समय में मनुष्य जिस भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह उसी भाव को प्राप्त होता है, जिस भाव का जीवन में निरन्तर स्मरण किया है। इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध (अपने कर्म) करो। मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे। ॐकार रूपी एकाक्षर ब्रह्म का उच्चारण कर, मेरा स्मरण करता हुआ मनुष्य जब शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे परम-धाम को प्राप्त करता है। मुझे प्राप्त करके उस मनुष्य का इस दुख-रूपी, अस्तित्व-रहित, क्षणभंगुर संसार में, पुनर्जन्म कभी नही होता है।
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मुझे भगवान के इन वचनों के स्वाध्याय का अवसर मिला, मेरा यह जीवन और मैं स्वयं धन्य हुआ। जय हो !! सच्चिदानंद परमात्मा की जय हो !! सभी का कल्याण हो, सभी सन्मार्ग के पथिक हों !! हरिः ॐ तत्सत् !! 🌹🙏🌹
कृपा शंकर
२ जून २०२१

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