यह "New World Order" क्या है? ये बड़े ही भ्रामक शब्द हैं। हो सकता है यह भविष्य की किसी संभावित नई राजनीतिक व्यवस्था का सूचक हो, लेकिन अब तक तो अमेरिका व यूरोप के दानव सेठों, सरकारों और अन्य साम्राज्यवादियों ने अपने छल-कपट व षड़यंत्रों से इन शब्दों का प्रयोग दुनियाँ को ठगने के लिए ही किया है। भारत इसका बहुत अधिक व बुरी तरह शिकार रहा है।
.दवा पहले बन जाती है, बीमारी बाद में फैलाई जाती है। दुनिया को कूटनीति, भय व प्रलोभन से मजबूर किया जाता है कि उसी दवा को लें। जब पूंजीपति दानव सेठों की तिजोरियाँ भर जाती हैं, तब उस दवा को बेकार बता कर कुछ और नई चीज ले आई जाती हैं। दुनियाँ मरे तो मरे।
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दुनिया के देशों को पिछड़ा व गुलाम बनाए रखने के लिए दानवी समाजों द्वारा उन्हें ऐसी नीतियों का पालन करने को मजबूर कर दिया जाता है कि वे सदा पिछड़े ही रहें। वहाँ के कुछ राजनेताओं, न्यायाधीशों व अधिकारियों को खरीद लिया जाता है। तरह तरह के भाड़े के आंदोलन वहाँ खड़े कर दिये जाते हैं। और ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी जाती हैं कि वे देश व समाज पिछड़े ही रहें। तरह तरह के भ्रामक नारों, मज़हबी पंथों व समाजों का निर्माण दूसरों को पराधीन बनाने के लिए किया जाता है।
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अब तक तो ये ही world order रहे हैं। अब देखो क्या नई व्यवस्था (New World Order) आती है? सिर्फ सनातन धर्म ने ही परोपकार और वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना की है, अन्य किसी ने भी नहीं। विषय बहुत गहरा और लंबा है। अतः आपके विवेक पर छोड़ रहा हूँ। आप स्वयं इस विषय पर विचार करें। ॐ तत्सत् !!
२ जून २०२१
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पुनश्च :---
देवों और दानवों में सृष्टि के आदिकाल से ही सदा संघर्ष रहा है। कभी देव जीते हैं, तो कभी दानव। सनातन धर्म ही एकमात्र दैवीय संस्कृति है, अन्य सब दानवी हैं। वर्तमान भारत, दानव समाजों से पददलित है, जिसका त्राण सत्यनिष्ठा से श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेशों के आचरण से ही हो सकता है। गीता के उपदेश ही सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा व वैश्वीकरण करेंगे। जब तक गीता का ज्ञान हमारे आचरण में है, तब तक भारत व सनातन-धर्म को कोई नष्ट नहीं कर सकता। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
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