मंदिरों का महत्व .....
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मंदिरों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता| उनकी पुनर्प्रतिष्ठा करनी ही पड़ेगी| मंदिर सामूहिक साधना के केंद्र हैं| जहाँ अनेक लोग साधना करते हैं वहाँ ऐसे स्पंदनों का निर्माण हो जाता है कि नवागंतुक की चेतना भी भक्ति से भर जाती है| उनकी स्थापत्य कला भी ऐसी होती है जहाँ सूक्ष्म दिव्य स्पंदनों का निर्माण और संरक्षण बहुत दीर्घकाल तक रहता है| मंदिरों में आरती व भजन पूजन, भक्तों के कल्याण के लिए होते है| विधिवत आरती के समय उपस्थित भक्तों के ह्रदय भक्ति से भर जाते हैं| ठाकुर जी कोे हमसे हमारे परमप्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| सारे कर्मकांड भक्ति जगाने के लिए हैं|
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मंदिरों में नियमित जाने से भक्तों का आपस में मिलना-जुलना होता है इससे उनमें पारस्परिक प्रेम बना रहता है| मंदिर का शिखर दूर से ही दिखाई देता है अतः इसे ढूँढने में कठिनाई नहीं होती| मंदिर के साथ धर्मशाला भी होती है ताकि आगंतुक वहां विश्राम कर सकें| प्रसाद के रूप में क्षुधा शांति की भी व्यवस्था होती है| अंग्रेजों के शासन से पूर्व मंदिरों के साथ साथ विद्यालय भी होते थे जहां नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी| अंग्रेजों ने ऐसे सभी विद्यालय नष्ट करवा दिए| मंदिरों के पुजारी व महंत धर्म-प्रचारक होते थे| हिन्दू साधू संतों के हाथ में ही मंदिरों की व्यवस्था होनी चाहिए| उन्हें फिर से धर्म-प्रचार के केन्द्रों के रूप में पुनर्प्रतिष्ठित करना ही पड़ेगा|
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मंदिरों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता| उनकी पुनर्प्रतिष्ठा करनी ही पड़ेगी| मंदिर सामूहिक साधना के केंद्र हैं| जहाँ अनेक लोग साधना करते हैं वहाँ ऐसे स्पंदनों का निर्माण हो जाता है कि नवागंतुक की चेतना भी भक्ति से भर जाती है| उनकी स्थापत्य कला भी ऐसी होती है जहाँ सूक्ष्म दिव्य स्पंदनों का निर्माण और संरक्षण बहुत दीर्घकाल तक रहता है| मंदिरों में आरती व भजन पूजन, भक्तों के कल्याण के लिए होते है| विधिवत आरती के समय उपस्थित भक्तों के ह्रदय भक्ति से भर जाते हैं| ठाकुर जी कोे हमसे हमारे परमप्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| सारे कर्मकांड भक्ति जगाने के लिए हैं|
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मंदिरों में नियमित जाने से भक्तों का आपस में मिलना-जुलना होता है इससे उनमें पारस्परिक प्रेम बना रहता है| मंदिर का शिखर दूर से ही दिखाई देता है अतः इसे ढूँढने में कठिनाई नहीं होती| मंदिर के साथ धर्मशाला भी होती है ताकि आगंतुक वहां विश्राम कर सकें| प्रसाद के रूप में क्षुधा शांति की भी व्यवस्था होती है| अंग्रेजों के शासन से पूर्व मंदिरों के साथ साथ विद्यालय भी होते थे जहां नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी| अंग्रेजों ने ऐसे सभी विद्यालय नष्ट करवा दिए| मंदिरों के पुजारी व महंत धर्म-प्रचारक होते थे| हिन्दू साधू संतों के हाथ में ही मंदिरों की व्यवस्था होनी चाहिए| उन्हें फिर से धर्म-प्रचार के केन्द्रों के रूप में पुनर्प्रतिष्ठित करना ही पड़ेगा|
हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ मार्च २०२०
कृपा शंकर
६ मार्च २०२०
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