भगवान की भक्ति करने का कर्ताभाव एक धोखा है, भक्ति भी वे हैं, और भक्त भी वे स्वयं ही हैं, कहीं कोई भेद नहीं है .....
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एक प्रेमी के लिए प्रेम करने का भाव एक मायावी धोखा है| प्रेम के पात्र तो सिर्फ भगवान हैं, अन्य कोई नहीं| प्रेम भी वे है, और प्रेमी भी वे ही हैं| करुणावश वे स्वयं ही स्वयं को प्रेम कर रहे हैं| प्रेम का ही दूसरा नाम भक्ति है| यह भक्ति करने और भक्त होने का भ्रम अंततः एक धोखा ही है| हम तो हैं ही नहीं| जो कुछ भी है, वह वे भगवान स्वयं ही हैं| वे स्वयं ही स्वयं को याद करते हैं| वे स्वयं ही यह "मैं" बन गए हैं| हम तो एक निमित्त मात्र हैं| इस देह के अंत समय में भी हे भगवन, तुम स्वयं ही स्वयं को याद कर लेना| यह तुम्हारा ही वचन है ...
"अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्|"
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हे मेरे उपास्य आराध्य देव, मैं तुम्हारा स्मरण/मनन/चिंतन/ध्यान करने में असमर्थ हूँ| तुम्हारी माया से पार पाना संभव नहीं है| तुम स्वयं ही यह जीवात्मा हो, अब तुम स्वयं ही इस जीवात्मा का उद्धार करो| मैं शाश्वत जीवात्मा, यह देह नहीं, फिर भी इसी की सुख-सुविधा और विलास में डूबा हुआ हूँ| इस की चेतना से निकलने में असमर्थ हूँ| अब तुम ही अनुग्रह करो| मैं तुम्हारी शरणागत हूँ| यह सर्वस्व बापस तुम्हें ही समर्पित कर रहा हूँ| मेरा लक्ष्य और गति तुम स्वयं हो| मैं इस मायावी विक्षेप और आवरण से जकड़ा हुआ हूँ, अब मेरी रक्षा करो| ये तुम्हारे ही वचन हैं ....
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
"सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं| जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं||"
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||"
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्|
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्||"
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हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायण केशवा| गोविन्द गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदर माधवा||
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते| बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्||"
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"कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा| बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात्| करोमि यद्यत् सकलं परस्मै| नारायणायेति समर्पयामि||"
Whatever I perform with my body, speech, mind, limbs, intellect, or my inner self either intentionally or unintentionally, I dedicate it all to Thee.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
८ मार्च २०२०
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एक प्रेमी के लिए प्रेम करने का भाव एक मायावी धोखा है| प्रेम के पात्र तो सिर्फ भगवान हैं, अन्य कोई नहीं| प्रेम भी वे है, और प्रेमी भी वे ही हैं| करुणावश वे स्वयं ही स्वयं को प्रेम कर रहे हैं| प्रेम का ही दूसरा नाम भक्ति है| यह भक्ति करने और भक्त होने का भ्रम अंततः एक धोखा ही है| हम तो हैं ही नहीं| जो कुछ भी है, वह वे भगवान स्वयं ही हैं| वे स्वयं ही स्वयं को याद करते हैं| वे स्वयं ही यह "मैं" बन गए हैं| हम तो एक निमित्त मात्र हैं| इस देह के अंत समय में भी हे भगवन, तुम स्वयं ही स्वयं को याद कर लेना| यह तुम्हारा ही वचन है ...
"अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्|"
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हे मेरे उपास्य आराध्य देव, मैं तुम्हारा स्मरण/मनन/चिंतन/ध्यान करने में असमर्थ हूँ| तुम्हारी माया से पार पाना संभव नहीं है| तुम स्वयं ही यह जीवात्मा हो, अब तुम स्वयं ही इस जीवात्मा का उद्धार करो| मैं शाश्वत जीवात्मा, यह देह नहीं, फिर भी इसी की सुख-सुविधा और विलास में डूबा हुआ हूँ| इस की चेतना से निकलने में असमर्थ हूँ| अब तुम ही अनुग्रह करो| मैं तुम्हारी शरणागत हूँ| यह सर्वस्व बापस तुम्हें ही समर्पित कर रहा हूँ| मेरा लक्ष्य और गति तुम स्वयं हो| मैं इस मायावी विक्षेप और आवरण से जकड़ा हुआ हूँ, अब मेरी रक्षा करो| ये तुम्हारे ही वचन हैं ....
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
"सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं| जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं||"
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||"
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्|
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्||"
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हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायण केशवा| गोविन्द गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदर माधवा||
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते| बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्||"
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"कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा| बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात्| करोमि यद्यत् सकलं परस्मै| नारायणायेति समर्पयामि||"
Whatever I perform with my body, speech, mind, limbs, intellect, or my inner self either intentionally or unintentionally, I dedicate it all to Thee.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
८ मार्च २०२०
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