Tuesday, 5 May 2020

तत्व रूप में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही गुरु-रूप परमब्रह्म हैं ....

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने| प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||
तत्व रूप में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही गुरु-रूप परमब्रह्म हैं| वे ही आत्मगुरु है, वे ही विश्वगुरु हैं, परमब्रह्म और परमशिव भी वे ही हैं| हम उन के एक उपकरण मात्र हैं, कर्ता तो वे ही हैं| हमारा पूरा अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) उन्हें ही समर्पित हो| आज्ञाचक्र में उनके बीजमंत्र के जप से अज्ञानरूपी रुद्र-ग्रंथि का भेदन होता है| ज्योतिर्मय आकाश-तत्व कूटस्थ में उन के ध्यान, और प्राण-तत्व के साथ मेरुदंड के चक्रों में उनके भागवत मंत्र के जप से कुंडलिनी महाशक्ति जागृत होती है, जो अंततः ब्रह्मरंध्र का भेदन कर अनंतता से परे परमशिव से एकाकार हो जाती है| वे ही मोक्ष है, वे ही मुक्ति हैं, वे ही उपास्य हैं, वे ही उपासना हैं, और वे ही उपासक हैं| वे हमारी सतत रक्षा करें और इतनी सामर्थ्य और शक्ति दें कि हम पूर्णरूपेण समर्पित होकर उनके साथ एक हो सकें|
ॐ क्लीं कृष्णाय नमः|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
५ मार्च २०२०

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