गीता में एक बड़ा रहस्यमय श्लोक है जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अति गंभीरता से विचारणीय एक महत्वपूर्ण विषय है| यहाँ भगवान हमें अहंकार पर विजय पाने का निर्देश देते हैं| परमात्मा के मार्ग में हमारा लोभ और अहंकार .... ये दो सबसे बड़ी बाधाएँ हैं| अति अति संक्षेप में ही इस पर चर्चा करेंगे| गीता में भगवान कहते हैं.....
"यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते| हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ||१८:१७||"
इसका भावार्थ यह है कि जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मारता है और न (पाप, पुण्य से) बँधता है||
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अनेक महान आचार्यों ने इस पर खूब लिखा है| मैं कर्ता या अकर्ता हूँ ये दो प्रकार के मनोभाव हैं| अहंकारशून्य आत्मज्ञ पुरुष को ये दोनों ही भाव नहीं रहते| आत्मा के शुद्ध स्वरुप में कोई 'अध्यास' नहीं है| कौन भोक्ता है और कौन कर्ता है, इसके समझने से पूर्व यह जान लें कि मैं कौन हूँ और मेरा स्वरुप क्या है| "अध्यास", अद्वैत वेदांत का एक पारिभाषिक शब्द है| एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भास 'अध्यास' कहलाता है|
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परमात्मा के साकार रूप आप सब को सप्रेम सादर नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०२०
"यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते| हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ||१८:१७||"
इसका भावार्थ यह है कि जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मारता है और न (पाप, पुण्य से) बँधता है||
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अनेक महान आचार्यों ने इस पर खूब लिखा है| मैं कर्ता या अकर्ता हूँ ये दो प्रकार के मनोभाव हैं| अहंकारशून्य आत्मज्ञ पुरुष को ये दोनों ही भाव नहीं रहते| आत्मा के शुद्ध स्वरुप में कोई 'अध्यास' नहीं है| कौन भोक्ता है और कौन कर्ता है, इसके समझने से पूर्व यह जान लें कि मैं कौन हूँ और मेरा स्वरुप क्या है| "अध्यास", अद्वैत वेदांत का एक पारिभाषिक शब्द है| एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भास 'अध्यास' कहलाता है|
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परमात्मा के साकार रूप आप सब को सप्रेम सादर नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०२०
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