भारत की हिन्दू विरोधी राजनीति -----
मैं भारत की अब तक की सारी हिन्दू विरोधी राजनीति से पूरी तरह निराश हूँ| मेरी पीड़ा भारत के सारे हिन्दू समाज की पीड़ा है| एक षड़यंत्र के अंतर्गत भारत के हिन्दू युवाओं को धार्मिक शिक्षा से वंचित कर धर्मविहीन कर दिया गया है| भारत के सारे क्रांतिकारियों को, समाजसेवकों को, और अनगिनत देशभक्तों को जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ करने की प्रेरणा हिन्दू धर्म की शिक्षा से मिली, न कि धर्मनिरपेक्षता से| अभी भी जो व्यक्ति देश व समाज की परोपकारी सेवा कर रहे हैं, उनके पीछे उनकी हिन्दू धर्म की शिक्षा है, न कि अन्य कोई कारण|
सनातन हिन्दू धर्म कहता है .....
"अष्टादशपुराणानां सारं व्यासेन कीर्तितम्| परोपकार: पुण्याय पापाय परपीडनम् ||"
अठारह पुराणों के सार रूप में महर्षि व्यास ने सिर्फ दो बातें कही हैं ... "दूसरों का उपकार करने से पुण्य होता है, और दुःख देने से पाप|
संत तुलसीदास जी कहते हैं .....
"परहित सरिस धरम नहि भाई| परपीड़ा सम नहि अधिकाई||"
अर्थात परोपकार के बराबर कोई धर्म नहीं है, और परपीड़ा के बराबर कोई पाप|
वे तो सारे जगत को ही सीताराममय मानते हैं .....
"सियाराममय सब जग जानी| करहु प्रणाम जोरि जुग पानी||"
अर्थात पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए|
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||"
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भारत में मुस्लिम और ईसाई अपने बच्चों को मदरसों में और कान्वेंट स्कूलों में अपने धर्म की शिक्षा दे सकते हैं, और उस शिक्षा को सरकारी मान्यता प्राप्त है| हिंदुओं के गुरुकुलों को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है| वहाँ से पढे-लिखे युवकों को कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती| भारत का संविधान घोर हिन्दू विरोधी है, यह हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा का अधिकार नहीं देता|
सनातन हिन्दू धर्म कहता है .....
"अष्टादशपुराणानां सारं व्यासेन कीर्तितम्| परोपकार: पुण्याय पापाय परपीडनम् ||"
अठारह पुराणों के सार रूप में महर्षि व्यास ने सिर्फ दो बातें कही हैं ... "दूसरों का उपकार करने से पुण्य होता है, और दुःख देने से पाप|
संत तुलसीदास जी कहते हैं .....
"परहित सरिस धरम नहि भाई| परपीड़ा सम नहि अधिकाई||"
अर्थात परोपकार के बराबर कोई धर्म नहीं है, और परपीड़ा के बराबर कोई पाप|
वे तो सारे जगत को ही सीताराममय मानते हैं .....
"सियाराममय सब जग जानी| करहु प्रणाम जोरि जुग पानी||"
अर्थात पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए|
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||"
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भारत में मुस्लिम और ईसाई अपने बच्चों को मदरसों में और कान्वेंट स्कूलों में अपने धर्म की शिक्षा दे सकते हैं, और उस शिक्षा को सरकारी मान्यता प्राप्त है| हिंदुओं के गुरुकुलों को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है| वहाँ से पढे-लिखे युवकों को कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती| भारत का संविधान घोर हिन्दू विरोधी है, यह हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा का अधिकार नहीं देता|
भारत के सभी सिनेमाओं में हिंदुओं को चरित्रहीन दुर्जन चोर बदमाश दिखाया जाता है| पर अन्य धर्मावलम्बियों को सज्जन व चरित्रवान दिखाया जाता है| हिंदुओं को उनके धर्म से विमुख कर दिया गया है| हिंदुओं के मंदिरों पर सरकारी अधिकार है| मंदिरों की आय से धर्मशिक्षा दी जानी चाहिए पर उसकी सरकारी लूट जारी है| उस धन को लूटकर अन्य मतावलंबियों को दिया जाता है| शिक्षा में पाठ्यक्रमों से देशभक्ति की रचनाओं को हटा दिया गया है|
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धर्मशिक्षा के अभाव के कारण भारत का हिन्दू युवा स्वयं को दीन-हीन, कुंठित व आत्मबलहीन महसूस कर रहा है| आध्यात्मिक साधना से ही आत्मबल आता है| पिछले कांग्रेसी शासन में तो सांप्रदायिकता विरोधी अधिनियम लाकर हिंदुओं का अस्तित्व मिटाने की ही तैयारी कर ली गई थी| हिन्दू धर्म की कुछ कुछ रक्षा वर्तमान सरकार के द्वारा हुई है, पर यह पर्याप्त नहीं है| यदि यही स्थिति बनी रही तो भारत से हिन्दू धर्म समाप्त हो जाएगा| दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो भारत, भारत ही नहीं रहेगा| भारत का अस्तित्व सनातन धर्म पर ही निर्भर है| ॐ तत्सत् |
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धर्मशिक्षा के अभाव के कारण भारत का हिन्दू युवा स्वयं को दीन-हीन, कुंठित व आत्मबलहीन महसूस कर रहा है| आध्यात्मिक साधना से ही आत्मबल आता है| पिछले कांग्रेसी शासन में तो सांप्रदायिकता विरोधी अधिनियम लाकर हिंदुओं का अस्तित्व मिटाने की ही तैयारी कर ली गई थी| हिन्दू धर्म की कुछ कुछ रक्षा वर्तमान सरकार के द्वारा हुई है, पर यह पर्याप्त नहीं है| यदि यही स्थिति बनी रही तो भारत से हिन्दू धर्म समाप्त हो जाएगा| दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो भारत, भारत ही नहीं रहेगा| भारत का अस्तित्व सनातन धर्म पर ही निर्भर है| ॐ तत्सत् |
कृपा शंकर
२९ फरवरी २०२०
२९ फरवरी २०२०
"धर्म-निरपेक्षता" व "समाजवाद" इन दो भ्रामक सिद्धांतों पर प्रतिबंध लगना चाहिए| इन्होनें विश्व को, विशेषकर भारत को जितना ठगा और भ्रमित किया है, उतना अन्य किसी भी सिद्धान्त ने नहीं|
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भारत में धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है ... सिर्फ हिंदुओं की निंदा और उनके हितों पर कुठाराघात, और हिंदुओं के अतिरिक्त अन्य सब का तुष्टीकरण करना| धर्म-निरपेक्ष शब्द का अर्थ है अधर्म-सापेक्ष| धर्म-निरपेक्षता के नाम पर अधर्म ही हो रहा है|
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"समाजवाद" शब्द का अर्थ है -- अपने स्वयं के समाज/परिवार/संबंधियों को समृद्ध बना देना, बाकी सब को कंगाल। यही है असली समाजवाद।
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ये दोनों ही शब्द किन्हीं बुद्धि-पिशाचों के विकृत दिमाग की उपज हैं|