Tuesday, 5 May 2020

हारिये ना हिम्मत, बिसारिये न हरिः नाम -----

हारिये ना हिम्मत, बिसारिये न हरिः नाम| जब भी समय मिले तब कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करें| गीता में जिस ब्राह्मी स्थिति की बात कही गई है, निश्चय पूर्वक प्रयास करते हुए आध्यात्म की उस परावस्था में रहें| सारा जगत ही ब्रह्ममय है| हमारे हृदय में इतनी पवित्रता हो जिसे देखकर श्वेत कमल भी शरमा जाए| किसी भी परिस्थिति में परमात्मा के अपने इष्ट स्वरूप की उपासना न छोड़ें| पता नहीं कितने जन्मों में किए हुए पुण्य कर्मों के फलस्वरूप हमें भक्ति का यह अवसर मिला है| कहीं ऐसा न हो कि हमारी ही उपेक्षा से परमात्मा को पाने की हमारी अभीप्सा ही समाप्त हो जाए| जीवन में अंधकारमय प्रतिकूल झंझावात आते ही रहते हैं जिनसे हमें विचलित नहीं होना चाहिए| इनसे तो हमारी प्रखर चेतना ही जागृत होती है व अंतर का सौंदर्य और भी अधिक निखर कर बाहर आता है| समस्त सृष्टि चैतन्य का एक खेल मात्र है| जो कुछ भी देश-काल में घटित हो रहा है वह एक विराट चुम्बकीय क्षेत्र के दो विपरीत ध्रुवों के बीच का तनाव या घर्षण मात्र है| इसे ईश्वर के मन का एक विचार भी कह सकते हैं| प्रकृति, माया और जीव उसी परम चैतन्य की अभिव्यक्तियाँ हैं| सृष्टि के इस रहस्य को समझ कर उस परम चैतन्य से अंततः जुड़ना ही मनुष्य जीवन का ध्येय है| कभी भी विचलित न हों| हम सब सच्चिदानंद परमात्मा की ही अभिव्यक्तियाँ हैं|
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आध्यात्म में जितना हमें परमात्मा से प्रेम है उतना ही इस भौतिक जगत में अपने राष्ट्र भारतवर्ष की अस्मिता से भी है| राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए शस्त्र भी धारण करना पड़े तो वह भी धारण करेंगे, प्राणोत्सर्ग भी करना पड़े तो वह भी करेंगे| पता नहीं कितनी बार शस्त्रास्त्र धारण किये हैं और प्राण भी दिए हैं| राष्ट्र को अब और खंडित नहीं होने देंगे|
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ मार्च २०२०

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