"भ्रामरी गुहा" का रहस्य ....
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गुरु की आज्ञा से जब आज्ञाचक्र पर ध्यान करते हैं, तब गुरुकृपा से धीरे-धीरे वहाँ एक प्रकाशपुंज के दर्शन होने लगते हैं| उस प्रकाशपुंज को हम 'ज्योतिर्मय ब्रह्म' कहते हैं जिसका ध्यान किया जाता है| फिर धीरे-धीरे आरंभ में भ्रमर गुंजन की सी एक ध्वनि सुनाई देने लगती है| उस ध्वनि को 'अनाहत नाद' कहते हैं जिसे सुनते हुए गुरु-प्रदत्त बीजमंत्र का मानसिक जप करते हैं| यह आध्यात्मिक साधना, गुरु की आज्ञा से गुरु के निर्देशन में ही की जाती है|
वह प्रकाश-पुंज, भ्रमर की तरह डोलता है जिसके मध्य के स्थिर बिन्दु को प्रतीकात्मक रूप से 'भ्रामरी गुफा' कहते हैं| उसमें स्वाभाविक रूप से प्रवेश करते हैं तब बड़ी दिव्य अनुभूतियाँ और आनंद की प्राप्ति होती है| भगवान की माया भी उस समय अति सक्रिय हो जाती है| माया के दो अस्त्र होते हैं..... एक तो है आवरण, और दूसरा है विक्षेप| आवरण कहते हैं अज्ञान के उस पर्दे को जो सत्य का बोध नहीं होने देता| जब हम किसी बिन्दु पर मन को एकत्र करते हैं, तब अचानक ही कोई दूसरा विचार आकर हमें भटका देता है| उस भटकाव को जो हमें एकाग्र नहीं होने देता, विक्षेप कहते हैं| जब तक हमारे मन में किसी भी तरह का कोई लोभ और अहंकार हैं, तब तक यह माया उसी अनुपात में हमें आवरण और विक्षेप के रूप में बाधित करती रहेगी| इस से पार जाने के लिए भक्ति और समर्पण का आश्रय लेना पड़ता है| बिना भक्ति के कोई प्रगति नहीं हो सकती| यह शाश्वत नियम है जो भ्रामरी गुफा का रहस्य है|
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माया को महाठगिनी कहा गया है जो आवरण और विक्षेप के रूप में हमें ठगती रहती है| हमारे मन में जितना अधिक लोभ और अहंकार है, माया भी उसी अनुपात में हमें उतना ही दुःखी करती है| अतः भगवान की भक्ति का आश्रय लें| अपने लोभ और अहंकार पर जिसने विजय पा ली, वह ही वास्तव में सच्चा विजयी है| ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०२०
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गुरु की आज्ञा से जब आज्ञाचक्र पर ध्यान करते हैं, तब गुरुकृपा से धीरे-धीरे वहाँ एक प्रकाशपुंज के दर्शन होने लगते हैं| उस प्रकाशपुंज को हम 'ज्योतिर्मय ब्रह्म' कहते हैं जिसका ध्यान किया जाता है| फिर धीरे-धीरे आरंभ में भ्रमर गुंजन की सी एक ध्वनि सुनाई देने लगती है| उस ध्वनि को 'अनाहत नाद' कहते हैं जिसे सुनते हुए गुरु-प्रदत्त बीजमंत्र का मानसिक जप करते हैं| यह आध्यात्मिक साधना, गुरु की आज्ञा से गुरु के निर्देशन में ही की जाती है|
वह प्रकाश-पुंज, भ्रमर की तरह डोलता है जिसके मध्य के स्थिर बिन्दु को प्रतीकात्मक रूप से 'भ्रामरी गुफा' कहते हैं| उसमें स्वाभाविक रूप से प्रवेश करते हैं तब बड़ी दिव्य अनुभूतियाँ और आनंद की प्राप्ति होती है| भगवान की माया भी उस समय अति सक्रिय हो जाती है| माया के दो अस्त्र होते हैं..... एक तो है आवरण, और दूसरा है विक्षेप| आवरण कहते हैं अज्ञान के उस पर्दे को जो सत्य का बोध नहीं होने देता| जब हम किसी बिन्दु पर मन को एकत्र करते हैं, तब अचानक ही कोई दूसरा विचार आकर हमें भटका देता है| उस भटकाव को जो हमें एकाग्र नहीं होने देता, विक्षेप कहते हैं| जब तक हमारे मन में किसी भी तरह का कोई लोभ और अहंकार हैं, तब तक यह माया उसी अनुपात में हमें आवरण और विक्षेप के रूप में बाधित करती रहेगी| इस से पार जाने के लिए भक्ति और समर्पण का आश्रय लेना पड़ता है| बिना भक्ति के कोई प्रगति नहीं हो सकती| यह शाश्वत नियम है जो भ्रामरी गुफा का रहस्य है|
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माया को महाठगिनी कहा गया है जो आवरण और विक्षेप के रूप में हमें ठगती रहती है| हमारे मन में जितना अधिक लोभ और अहंकार है, माया भी उसी अनुपात में हमें उतना ही दुःखी करती है| अतः भगवान की भक्ति का आश्रय लें| अपने लोभ और अहंकार पर जिसने विजय पा ली, वह ही वास्तव में सच्चा विजयी है| ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०२०
एक ऐसी गुफा है जिसमें प्रवेश करने से हम भयभीत होते हैं, लेकिन उसमें वह सारा खजाना और अपार धन छिपा पड़ा है, जिसे हम जन्म-जन्मांतरों से ढूँढ़ रहे हैं। (नीचे का चित्र तो एक चित्र मात्र है जिस पर न जाएँ) हमारी सूक्ष्म देह के भ्रूमध्य में वास्तव में एक बिंदु है जिसका नाम है --"भ्रामरी गुहा" यानि भ्रामरी गुफा। इसके द्वार पर "आवरण" और "विक्षेप" नाम की दो आसुरी शक्तियाँ बैठी हैं, जो हर किसी को अन्दर प्रवेश नहीं करने देती। उन पर विजय प्राप्त करनी पड़ती है, तभी हम अन्दर प्रवेश कर सकते हैं।
ReplyDeleteउस गुहा में वह समस्त खज़ाना छिपा है जिसे प्राप्त करना हमारे जीवन का लक्ष्य है। वह गुफा है हमारा कूटस्थ बिंदु यानि आज्ञाचक्र, जिसके भेदन के प्रयास में निरंतर माया के आवरण और विक्षेप आते हैं। लेकिन अनवरत साधना और गुरुकृपा से उसका भेदन कर हम सहस्त्रार में प्रवेश करते हैं, तो पाते हैं कि समस्त ज्ञान तो हम स्वयं ही हैं। वह सब कुछ जिसे हम ढूँढ़ रहे हैं, वह हम स्वयं ही हैं। हमारे से पृथक अन्य कुछ भी नहीं है। ॐ तत्सत्॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ हे शिव ! शिव ! शिव ! शिव ! शिव ! ॐ ॐ ॐ !!