Sunday, 14 July 2019

महावीर का 'जीयोऔर जीने दो' का सिद्धांत .....

महावीर का 'जीयोऔर जीने दो' का सिद्धांत .....
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भगवान महावीर श्रमण परम्परा के चौंबीसवें तीर्थंकर थे| तीर्थंकर का अर्थ है जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करते है और संसार-सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है| तीर्थंकर वह व्यक्ति है जिसने पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की है| महावीर का जन्म ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था| तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज-वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये| १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ| यह श्रमण परम्परा ही कालान्तर में जैन धर्म कहलाई| जैन का अर्थ होता है जितेन्द्रिय, यानि जिस ने मन आदि इन्द्रियों को जीत लिया है|
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श्रमण परम्परा के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे जिनके पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष है| ऋषभदेव का उल्लेख श्रुति में भी है और भागवत में भी| तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को उच्चतम नैतिक गुण बताया| उनके पंचशील के सिद्धांत ..... अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य हैं| योग-दर्शन में ये ही 'यम' कहलाते हैं| उन्होंने अनेकांतवाद व स्यादवाद जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए|
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हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो| यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है|
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(इस विषय पर अगले लेख में श्रमण परम्परा और ब्राह्मण परम्परा के बारे में लिखूंगा| दोनों में भेद है|) (कृपया कोई भी अशोभनीय टिप्पणी न करें)
कृपा शंकर
८ जुलाई २०१९

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