Sunday, 14 July 2019

ब्रह्मचर्य ....

ब्रह्मचर्य
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ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म यानि परमात्मा का सा आचरण, ब्र्ह्मचैतन्य में स्थिति, और हर उस कर्म से विमुखता जो ब्रह्म यानि परमात्मा से दूर करता है| यह योगदर्शन के पांच यमों में आता है और महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित पञ्च महाव्रतों में आता है जिन्हें पंचशील भी कहते हैं|
ब्रह्मचर्य का व्रत देवों को भी दुर्लभ है| ब्रह्मचर्य की महिमा को यदि मैं श्रुति, स्मृति, पुराणों व महाभारत से उद्धृत करूँ, या जैन साहित्य से उद्धृत करना आरम्भ करूँ तो इस लेख को कभी भी समाप्त नहीं कर पाऊँगा|
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प्राचीन काल में जब गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ब्रह्मचर्य अनिवार्य हुआ करता था, तब वीर, योद्धा, ज्ञानी व तपस्वी लोग होते थे, आज की तरह की घटिया मनुष्यता नहीं| जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का ओज सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित हो जाता है|
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इस विषय पर अधिक नहीं लिखना चाहता क्योंकि इस विषय पर बहुत अधिक साहित्य और मार्गदर्शन उपलब्ध है| अपने खान-पान में, संगति में, अध्ययन में और वातावरण के प्रति सजग रहें| ऐसे कोई विचार न आने दें जिनसे ब्रह्मचर्य भंग हो| जो आध्यात्मिक साधक हैं, उन्हें इस विषय पर पर्याप्त मार्गदर्शन उपलब्ध है| उन्हें ऐसे लेखों की आवश्यकता नहीं है|
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सभी को शुभ कामनाएँ !
१३ जुलाई २०१९

1 comment:

  1. एक ब्रहमचारी राजा ही राष्ट्र की रक्षा कर सकता है, कोई भोगी-विलासी नहीं.

    ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं विरक्षति| आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिणमिच्छ्ते|| (अथर्व० ११-५-१७)
    अर्थात ब्रह्मचर्य के तप से राजा राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ होता है। ब्रह्मचर्य के द्वारा ही आचार्य शिष्यों के शिक्षण की योग्यता को अपने भीतर सम्पादित करता है।

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