अपनी चेतना में मैं सभी के साथ एक हूँ| परमात्मा में हम सब एक हैं| जो आनंद भगवान की भक्ति और समर्पण में है, वह अन्यत्र कहीं भी नहीं है| गीता में बताई गयी भगवान की अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति के समक्ष अन्य कुछ भी नहीं है|
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मेरे लिए तो साकार रूप में वे
मेरे समक्ष नित्य शाम्भवी मुद्रा में पद्मासन में मेरे सहस्त्रार में
समाधिस्थ हैं| वे ही मेरे ध्येय हैं और मेरा समर्पण उन्हीं के प्रति है|
मेरे लिए वे ही परमशिव है, विष्णु हैं, नारायण हैं और जगन्माता हैं|
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शाम्भवी मुद्रा में पद्मासनस्थ समाधिस्थ एक छवि पुराण-पुरुष की अनेक साधकों के समक्ष चेतना में उभरती है| समर्पण उन्हीं के प्रति हो|
शाम्भवी मुद्रा में पद्मासनस्थ समाधिस्थ एक छवि पुराण-पुरुष की अनेक साधकों के समक्ष चेतना में उभरती है| समर्पण उन्हीं के प्रति हो|
ॐ ॐ ॐ
९ जुलाई २०१९
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