हम जातिवाद से मुक्त हों, जातिवाद हमारे पर एक अभिशाप है .....
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"जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम| गृह हमारा शून्य में, अनहद में विश्राम||"
परमार्थ के मार्ग पर चलने वाले पथिक तो भगवान को समर्पित होते ही जाति-विहीन व वर्ण-विहीन हो जाते हैं, घर से भी बेघर हो जाते हैं, देह की चेतना भी छुट जाती है और मोक्ष की कामना भी नष्ट हो जाती है| उनकी जाति अच्युत है|
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विवाह के बाद कन्या अपनी जाति, गौत्र और वर्ण सब अपने पति की जाति, गौत्र और वर्ण में मिला देती है| पति की इच्छा ही उसकी इच्छा हो जाती है| वैसे ही परमात्मा को समर्पित होने पर अपना कहने को कुछ भी नहीं बचता, सब कुछ उन्हीं का हो जाता है| 'मैं' और 'मेरापन' भी समाप्त हो जाता है| सब कुछ वे ही हो जाते हैं| भगवान् की जाति क्या है ? भगवान् का वर्ण क्या है ? भगवान् का घर कहाँ है ? जो उन का है वह ही हमारा है|
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प्रार्थना :---- तुम महासागर हो तो मैं जल की एक बूँद हूँ जो तुम्हारे में मिलकर महासागर ही बन जाती है| तुम एक प्रवाह हो तो मैं एक कण हूँ जो तुम्हारे में मिलकर विराट प्रवाह बन जाता है| तुम अनंतता हो तो मैं भी अनंत हूँ| तुम सर्वव्यापी हो तो मैं भी सदा तुम्हारे साथ हूँ| जो तुम हो वह ही मैं हूँ| मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| जब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता तो तुम भी मेरे बिना नहीं रह सकते| जितना प्रेम मेरे ह्रदय में तुम्हारे प्रति है, उससे अनंत गुणा प्रेम तो तुम मुझे करते हो| तुमने मुझे प्रेममय बना दिया है| जहाँ तुम हो वहीँ मैं हूँ, जहाँ मैं हूँ वहीँ तुम हो| मैं तुम्हारा अमृतपुत्र हूँ, तुम और मैं एक हैं|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० जुलाई २०१९
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"जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम| गृह हमारा शून्य में, अनहद में विश्राम||"
परमार्थ के मार्ग पर चलने वाले पथिक तो भगवान को समर्पित होते ही जाति-विहीन व वर्ण-विहीन हो जाते हैं, घर से भी बेघर हो जाते हैं, देह की चेतना भी छुट जाती है और मोक्ष की कामना भी नष्ट हो जाती है| उनकी जाति अच्युत है|
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विवाह के बाद कन्या अपनी जाति, गौत्र और वर्ण सब अपने पति की जाति, गौत्र और वर्ण में मिला देती है| पति की इच्छा ही उसकी इच्छा हो जाती है| वैसे ही परमात्मा को समर्पित होने पर अपना कहने को कुछ भी नहीं बचता, सब कुछ उन्हीं का हो जाता है| 'मैं' और 'मेरापन' भी समाप्त हो जाता है| सब कुछ वे ही हो जाते हैं| भगवान् की जाति क्या है ? भगवान् का वर्ण क्या है ? भगवान् का घर कहाँ है ? जो उन का है वह ही हमारा है|
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प्रार्थना :---- तुम महासागर हो तो मैं जल की एक बूँद हूँ जो तुम्हारे में मिलकर महासागर ही बन जाती है| तुम एक प्रवाह हो तो मैं एक कण हूँ जो तुम्हारे में मिलकर विराट प्रवाह बन जाता है| तुम अनंतता हो तो मैं भी अनंत हूँ| तुम सर्वव्यापी हो तो मैं भी सदा तुम्हारे साथ हूँ| जो तुम हो वह ही मैं हूँ| मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| जब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता तो तुम भी मेरे बिना नहीं रह सकते| जितना प्रेम मेरे ह्रदय में तुम्हारे प्रति है, उससे अनंत गुणा प्रेम तो तुम मुझे करते हो| तुमने मुझे प्रेममय बना दिया है| जहाँ तुम हो वहीँ मैं हूँ, जहाँ मैं हूँ वहीँ तुम हो| मैं तुम्हारा अमृतपुत्र हूँ, तुम और मैं एक हैं|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० जुलाई २०१९
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