वासनात्मक कामना विष है, इसकी काट परमात्मा का निरंतर नियमित चिंतन ही
है, अन्य कुछ भी नहीं| थोड़ा-बहुत जितना भी हो सकता है उतना तो विचलित हुए
बिना करना ही चाहिए| हिम्मत न हारें, अभ्यास करते ही रहें, भगवान सदा हमारे
साथ हैं|
मन में वासनात्मक विचारों का आना यानि विषयों का आकर्षण आध्यात्म मार्ग का सबसे बड़ा शत्रु है| विष तो एक बार ही मारता है पर विषय बार-बार मारते हैं| गीता में जो रजोगुणी लक्षण व कामनाएँ बताई गयी हैं, उनका पूर्णतः परित्याग किये बिना सतोगुण नहीं आयेंगे| तमोगुणी व रजोगुणी विषयों का त्याग निरंतर अभ्यास व वैराग्य द्वारा करना ही होगा, और सतोगुणी विषयों का निरंतर चिंतन करना होगा| अंततः जाना तो तीनों गुणों से परे ही होगा|
मन में वासनात्मक विचारों का आना यानि विषयों का आकर्षण आध्यात्म मार्ग का सबसे बड़ा शत्रु है| विष तो एक बार ही मारता है पर विषय बार-बार मारते हैं| गीता में जो रजोगुणी लक्षण व कामनाएँ बताई गयी हैं, उनका पूर्णतः परित्याग किये बिना सतोगुण नहीं आयेंगे| तमोगुणी व रजोगुणी विषयों का त्याग निरंतर अभ्यास व वैराग्य द्वारा करना ही होगा, और सतोगुणी विषयों का निरंतर चिंतन करना होगा| अंततः जाना तो तीनों गुणों से परे ही होगा|
अन्तःकरण में उन
वृत्तियों को ही लाना होगा जो हमें परमात्मा में स्थित करती हैं| इसके लिए
अपने विचारों और आचरण में पवित्रता लानी होगी| मन के साथ साथ बाहरी आचरण को
भी शुद्ध करना होगा| आहार शुद्धि, कुसंग-त्याग, सत्संग आदि अति आवश्यक
हैं| सबसे बड़ा है ... निज-विवेक| हर कार्य अपने निज-विवेक के प्रकाश में ही
करें|
मंगलमय शुभ कामनाएँ ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ जुलाई २०१९
.
पुनश्चः :----
मंगलमय शुभ कामनाएँ ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ जुलाई २०१९
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पुनश्चः :----
यह शरीर एक धोखेबाज मित्र है. इसके साथ जुड़ा अंतःकरण
(मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार)
भी धोखेबाज है.
इन्हें इतना ही दें जो इनके लिए आवश्यक है, अधिक नहीं.
इन पर नियंत्रण रखें. इन का कोई भरोसा नहीं है.
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