Sunday, 14 July 2019

हर सांस एक पुनर्जन्म है .....

साधना के मार्ग पर शत-प्रतिशत रहें| अपने हृदय में जो प्रचंड अग्नि जल रही है उसे दृढ़ निश्चय और सतत् प्रयास से निरंतर प्रज्ज्वलित रखिए| आधे-अधूरे मन से किया गया कोई प्रयास सफल नहीं होगा| साधना निश्चित रूप से सफल होगी, चाहे यह देह रहे या न रहे ...... इस दृढ़ निश्चय के साथ साधना करें, आधे अधूरे मन से नहीं|
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परमात्मा का स्मरण करते करते यदि मरना भी पड़े तो वह इस नारकीय सांसारिक जीवन जीने से तो अच्छा है|
परमात्मा मन का विषय नहीं है| "वह" जिसके द्वारा मन स्वयं मनन का विषय बन जाता है, "वह" ही ब्रह्म यानि परमात्मा है| वह मन और बुद्धि की समझ से परे है| उसके गुणों की हम गहरे ध्यान में अनुभूति तो कर सकते हैं, पर अपना रहस्य तो वे स्वयं ही कृपा कर के ही किसी को अनावृत कर सकते हैं|
"सोइ जानहि जेहि देहु जनाई, जानत तुमहिं तुमहि हुई जाई|"
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हर सांस एक पुनर्जन्म है|दो साँसों के मध्य का संधिक्षण वास्तविक संध्याकाल है, जिसमें की गयी साधना सर्वोत्तम होती है|हर सांस पर परमात्मा का स्मरण रहे क्योंकि हर सांस तो वे ही ले रहे हैं, न कि हम|
"हं" (प्रकृति) और "सः" (पुरुष) दोनों में कोई भेद नहीं है| प्रणवाक्षर परमात्मा का वाचक है| कोई अन्य नहीं है, सम्पूर्ण अस्तित्व हमारी ही अभिव्यक्ति है.
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श्रीगुरुभ्यो नमः ! हरिः ॐ !
८ जुलाई २०१९

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