"अहिंसा" पर मेरे विचार .....
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उपनिषदों व गीता में 'अहिंसा' को सर्वोच्च नैतिक गुणों में माना गया है| महर्षि पतंजलि द्वारा योगसूत्र में वर्णित पाँच यम ..... अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह हैं| जैन धर्म का तो आधारभूत बिंदु ही 'अहिंसा' है| महाभारत में अनेक बार अहिंसा को परमधर्म कहा गया है| अहिंसा पर मेरे विचार औरों से हटकर कुछ भिन्न हैं| अधिकांश लोग जीवों को न मारने और पीड़ा न देने को ही अहिंसा मानते हैं| पर जैसा मुझे समझ में आया है उसके अनुसार .....
"मनुष्य का अहंकार और मोह" सबसे बड़ी हिंसा है| उसके पश्चात "किसी निरीह असहाय की जिसे सहायता की नितांत आवश्यकता है, सहायता न करना", और "किसी निरपराध को पीड़ित करना" ही हिंसा है|
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हिंसा के साथ साथ सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का भी उतना ही महत्व है| पर मात्र अहिंसा पर ही अत्यधिक जोर देने, यहाँ तक कि आतताइयों, तस्करों और दुष्ट आक्रान्ताओं से भी अहिंसा का व्यवहार करने से दुर्भाग्यवश भारत में एक ऐसी सद्गुण-विकृति आ गयी जिसके कारण विदेशी आतताइयों द्वारा आकमण के द्वार खुल गए, व भारत एक निर्वीर्य असंगठित और कमजोर राष्ट्र बन गया|
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ऐतिहासिक दृष्टी से जिस दिन सम्राट अशोक ने अपनी तलवार नीचे रख दी थी, उसी दिन से भारत का पतन आरम्भ हो गया| भारत में आततायी के लिए जो हमारी स्त्री, संतान, धन, और प्राणों का अपहरण करने, राष्ट्र पर आक्रमण करने, हमें अपने आधीन करने और राष्ट्र को दरिद्र बनाने आता है, के विरुद्ध हिंसा को धर्म माना गया था| आततायी के लिए कहीं भी क्षमा का प्रावधान नहीं था| पृथ्वीराज चौहान जैसे प्रतापी राजाओं द्वारा दी गयी क्षमा का दंड भारत आज तक भुगत रहा है| इस तरह की क्षमा अहंकार-जनित थी और उसका दुष्परिणाम ही हुआ| इसी तरह की अहंकार-जनित अहिंसा के उपासकों के विश्वासघात के कारण सिंध के महाराजा दाहरसेन की पराजय हुई और आतताइयों द्वारा भारत के पराभव का क्रम आरम्भ हुआ| इस तरह के विश्वासघात अनेक बार हुए| सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु पूरे मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में भी| तथाकथित अहिंसा के उपासकों ने आतताइयों का वीरता से निरंतर प्रतिरोध नहीं किया, जिसका परिणाम उन्हें मृत्यु या बलात् हिंसक मतांतरण के रूप में मिला|
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दुर्भाग्य से भारत में ही अहिंसा को परम धर्म मानने वाले लोग सबसे बड़े परिग्रही और भोगी बन गए हैं| अनैतिकता व भ्रष्ट आचारण के साथ-साथ अहिंसा संभव नहीं है| जीवों को न मारना तो अहिंसा है, किसी चींटी के मारने पर तो पछतावा हमें हो सकता है, किन्तु दूसरों को ठगने या उनका शोषण करने में कोई पछतावा हमें क्यों नहीं होता?
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भारत में सभी हिन्दू देवी-देवताओं के हाथ में शस्त्रास्त्र हैं| जब तक भारत में शक्ति की साधना की जाती थी, भारत की और आँख उठाकर देखने का दु:साहस किसी आतताई का नहीं हुआ| गीता में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार हमारा अहंकार ही सबसे बड़ी हिंसा है| वे कहते हैं .....
"यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते| हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते||१८:१७||"
भगवान ने अहिंसा को बहुत बड़ा गुण भी बताया है .....
"अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्| दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्||१६:२||"
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आततायियों को दंड देने के लिए जिनके हाथ में धनुष और बाण हैं, वे प्रभु श्रीराम हमारे आराध्य हैं| वे यज्ञ की रक्षा करने के लिए ताड़का को मारना उचित समझते हैं, भक्तों की रक्षा के लिए मेघनाद के यज्ञ के विध्वंस का भी आदेश देते हैं, और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए लाखों राक्षसों के संहार को भी उचित मानते हैं| यह है अहिंसा का यथार्थ स्वरूप|
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आज की परिस्थिति में जब धर्म और राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं, तब धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए की गयी हिंसा भी अहिंसा है| इस समय राष्ट्र को एक ब्रह्मतेज और क्षात्रबल की नितांत आवश्यकता है| यही है -- 'अहिंसा परमो धर्म:'|
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महाभारत में अनेक स्थानों पर अहिंसा को परमधर्म बताया गया है, कुछ का यहाँ संकलन है .....
"अहिंसा परमो धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः| सत्ये कृत्वा प्रतिष्ठां तु प्रवर्तन्ते प्रवृत्तयः||
"अहिंसा परमः धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः सत्ये तु प्रतिष्ठाम् कृत्वा प्रवृत्तयः प्रवर्तन्ते|"
"अहिंसा सर्वभूतेभ्यः संविभागश्च भागशः| दमस्त्यागो धृतिः सत्यं भवत्यवभृताय ते||"
"अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः| अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते||
"अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः| अहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः||"
"अहिंसा परमो यज्ञस्तथाहिंसा परं फलम्| अहिंसा परमं मित्रमहिंसा परमं सुखम्||"
"सर्वयज्ञेषु वा दानं सर्वतीर्थेषु वाऽऽप्लुतम्| सर्वदानफलं वापि नैतत्तुल्यमहिंसया ||"
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब महान दिव्यात्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० जुलाई २०१९
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उपनिषदों व गीता में 'अहिंसा' को सर्वोच्च नैतिक गुणों में माना गया है| महर्षि पतंजलि द्वारा योगसूत्र में वर्णित पाँच यम ..... अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह हैं| जैन धर्म का तो आधारभूत बिंदु ही 'अहिंसा' है| महाभारत में अनेक बार अहिंसा को परमधर्म कहा गया है| अहिंसा पर मेरे विचार औरों से हटकर कुछ भिन्न हैं| अधिकांश लोग जीवों को न मारने और पीड़ा न देने को ही अहिंसा मानते हैं| पर जैसा मुझे समझ में आया है उसके अनुसार .....
"मनुष्य का अहंकार और मोह" सबसे बड़ी हिंसा है| उसके पश्चात "किसी निरीह असहाय की जिसे सहायता की नितांत आवश्यकता है, सहायता न करना", और "किसी निरपराध को पीड़ित करना" ही हिंसा है|
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हिंसा के साथ साथ सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का भी उतना ही महत्व है| पर मात्र अहिंसा पर ही अत्यधिक जोर देने, यहाँ तक कि आतताइयों, तस्करों और दुष्ट आक्रान्ताओं से भी अहिंसा का व्यवहार करने से दुर्भाग्यवश भारत में एक ऐसी सद्गुण-विकृति आ गयी जिसके कारण विदेशी आतताइयों द्वारा आकमण के द्वार खुल गए, व भारत एक निर्वीर्य असंगठित और कमजोर राष्ट्र बन गया|
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ऐतिहासिक दृष्टी से जिस दिन सम्राट अशोक ने अपनी तलवार नीचे रख दी थी, उसी दिन से भारत का पतन आरम्भ हो गया| भारत में आततायी के लिए जो हमारी स्त्री, संतान, धन, और प्राणों का अपहरण करने, राष्ट्र पर आक्रमण करने, हमें अपने आधीन करने और राष्ट्र को दरिद्र बनाने आता है, के विरुद्ध हिंसा को धर्म माना गया था| आततायी के लिए कहीं भी क्षमा का प्रावधान नहीं था| पृथ्वीराज चौहान जैसे प्रतापी राजाओं द्वारा दी गयी क्षमा का दंड भारत आज तक भुगत रहा है| इस तरह की क्षमा अहंकार-जनित थी और उसका दुष्परिणाम ही हुआ| इसी तरह की अहंकार-जनित अहिंसा के उपासकों के विश्वासघात के कारण सिंध के महाराजा दाहरसेन की पराजय हुई और आतताइयों द्वारा भारत के पराभव का क्रम आरम्भ हुआ| इस तरह के विश्वासघात अनेक बार हुए| सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु पूरे मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में भी| तथाकथित अहिंसा के उपासकों ने आतताइयों का वीरता से निरंतर प्रतिरोध नहीं किया, जिसका परिणाम उन्हें मृत्यु या बलात् हिंसक मतांतरण के रूप में मिला|
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दुर्भाग्य से भारत में ही अहिंसा को परम धर्म मानने वाले लोग सबसे बड़े परिग्रही और भोगी बन गए हैं| अनैतिकता व भ्रष्ट आचारण के साथ-साथ अहिंसा संभव नहीं है| जीवों को न मारना तो अहिंसा है, किसी चींटी के मारने पर तो पछतावा हमें हो सकता है, किन्तु दूसरों को ठगने या उनका शोषण करने में कोई पछतावा हमें क्यों नहीं होता?
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भारत में सभी हिन्दू देवी-देवताओं के हाथ में शस्त्रास्त्र हैं| जब तक भारत में शक्ति की साधना की जाती थी, भारत की और आँख उठाकर देखने का दु:साहस किसी आतताई का नहीं हुआ| गीता में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार हमारा अहंकार ही सबसे बड़ी हिंसा है| वे कहते हैं .....
"यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते| हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते||१८:१७||"
भगवान ने अहिंसा को बहुत बड़ा गुण भी बताया है .....
"अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्| दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्||१६:२||"
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आततायियों को दंड देने के लिए जिनके हाथ में धनुष और बाण हैं, वे प्रभु श्रीराम हमारे आराध्य हैं| वे यज्ञ की रक्षा करने के लिए ताड़का को मारना उचित समझते हैं, भक्तों की रक्षा के लिए मेघनाद के यज्ञ के विध्वंस का भी आदेश देते हैं, और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए लाखों राक्षसों के संहार को भी उचित मानते हैं| यह है अहिंसा का यथार्थ स्वरूप|
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आज की परिस्थिति में जब धर्म और राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं, तब धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए की गयी हिंसा भी अहिंसा है| इस समय राष्ट्र को एक ब्रह्मतेज और क्षात्रबल की नितांत आवश्यकता है| यही है -- 'अहिंसा परमो धर्म:'|
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महाभारत में अनेक स्थानों पर अहिंसा को परमधर्म बताया गया है, कुछ का यहाँ संकलन है .....
"अहिंसा परमो धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः| सत्ये कृत्वा प्रतिष्ठां तु प्रवर्तन्ते प्रवृत्तयः||
"अहिंसा परमः धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः सत्ये तु प्रतिष्ठाम् कृत्वा प्रवृत्तयः प्रवर्तन्ते|"
"अहिंसा सर्वभूतेभ्यः संविभागश्च भागशः| दमस्त्यागो धृतिः सत्यं भवत्यवभृताय ते||"
"अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः| अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते||
"अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः| अहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः||"
"अहिंसा परमो यज्ञस्तथाहिंसा परं फलम्| अहिंसा परमं मित्रमहिंसा परमं सुखम्||"
"सर्वयज्ञेषु वा दानं सर्वतीर्थेषु वाऽऽप्लुतम्| सर्वदानफलं वापि नैतत्तुल्यमहिंसया ||"
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब महान दिव्यात्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० जुलाई २०१९
'अहिंसा परमो धर्म' ..... यह महाभारत का वाक्य है जिसे समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि हिंसा क्या है| एक वीतराग व्यक्ति ही अहिंसक हो सकता है, सामान्य सांसारिक व्यक्ति तो कभी भी नहीं| मनुष्य का राग-द्वेष, अहंकार और लोभ ही हिंसा है|
ReplyDeleteजिन्होनें काम, क्रोध, लोभ, राग-द्वेष और अहंकार रूपी सारे अरियों (शत्रुओं) का समूल नाश किया है, उन सभी अरिहंतों को मैं प्रणाम करता हूँ चाहे वे किसी भी मत-मतांतर के हों, और इस ब्रह्मांड में कहीं भी रहते हों| उन्हें बारंबार प्रणाम है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ गुरु ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१९