सत्य ही नारायण है, सत्य ही परमात्मा है .....
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हम साधना करते हैं, मंत्रजाप करते हैं, पर हमें सिद्धि नहीं मिलती, इसका मुख्य कारण है.... "असत्यवादन"| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है और किसी भी स्तर पर दग्धवाणी से किये गए मन्त्रजाप का फल नहीं मिलता| इस कारण कोई साधना सफल नहीं हो पाती| यदि वाणी दूषित, कलुषित, दग्ध स्थिति में हो तो उसके द्वारा उच्चारित मन्त्र भी जल जायेंगे| तब जप, स्तवन, पाठ आदि करते रहने पर भी अभीष्ट सत्परिणाम उपलब्ध न हो सकेगा| परिष्कृत जिह्वा में ही वह शक्ति है जो हमारे जप को सिद्ध कर सकती है|
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सत्य बोलो पर अप्रिय सत्य से मौन अच्छा है| प्राणरक्षा और धर्मरक्षा के लिए बोला गया असत्य भी सत्य है, और जिस से किसी की प्राणहानि और धर्म की ग्लानि हो वह सत्य भी असत्य है| जिस की हम निंदा करते हैं उसके भी अवगुण हमारे में आ जाते हैं|
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जो लोग झूठे होते हैं, चोरी करते हैं, और दुराचारी होते हैं, वे चाहे जितना मंत्रजाप करें, और चाहे जितनी साधना या पूजा-पाठ करें, उन्हें कभी कोई सिद्धि नहीं मिल सकती| सत्य ही परमात्मा है| सत्य से दूर जाकर परमात्मा का बोध नहीं हो सकता|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
झुंझुनू (राजस्थान)
११ जुलाई २०१९
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पुनश्चः :--
“नहि सत्यात्परो धर्मो न पापामनृतात परम, तस्मात् सर्वात्मना मर्त्यःसत्मेकं समाश्रेयत|
सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः, सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा”||
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सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है, न ही झूठ से बडा कोई पाप| इसलिये मनुष्य को सदा एकमात्र सत्य का आश्रय लेना चाहिये| सत्यहीन की पूजा व्यर्थ है| सत्यहीन का जप व्यर्थ है| सत्यहीन तपस्या वैसे ही व्यर्थ है जैसे ऊसर भूमि में बीज बोना|
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हम साधना करते हैं, मंत्रजाप करते हैं, पर हमें सिद्धि नहीं मिलती, इसका मुख्य कारण है.... "असत्यवादन"| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है और किसी भी स्तर पर दग्धवाणी से किये गए मन्त्रजाप का फल नहीं मिलता| इस कारण कोई साधना सफल नहीं हो पाती| यदि वाणी दूषित, कलुषित, दग्ध स्थिति में हो तो उसके द्वारा उच्चारित मन्त्र भी जल जायेंगे| तब जप, स्तवन, पाठ आदि करते रहने पर भी अभीष्ट सत्परिणाम उपलब्ध न हो सकेगा| परिष्कृत जिह्वा में ही वह शक्ति है जो हमारे जप को सिद्ध कर सकती है|
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सत्य बोलो पर अप्रिय सत्य से मौन अच्छा है| प्राणरक्षा और धर्मरक्षा के लिए बोला गया असत्य भी सत्य है, और जिस से किसी की प्राणहानि और धर्म की ग्लानि हो वह सत्य भी असत्य है| जिस की हम निंदा करते हैं उसके भी अवगुण हमारे में आ जाते हैं|
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जो लोग झूठे होते हैं, चोरी करते हैं, और दुराचारी होते हैं, वे चाहे जितना मंत्रजाप करें, और चाहे जितनी साधना या पूजा-पाठ करें, उन्हें कभी कोई सिद्धि नहीं मिल सकती| सत्य ही परमात्मा है| सत्य से दूर जाकर परमात्मा का बोध नहीं हो सकता|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
झुंझुनू (राजस्थान)
११ जुलाई २०१९
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पुनश्चः :--
“नहि सत्यात्परो धर्मो न पापामनृतात परम, तस्मात् सर्वात्मना मर्त्यःसत्मेकं समाश्रेयत|
सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः, सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा”||
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सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है, न ही झूठ से बडा कोई पाप| इसलिये मनुष्य को सदा एकमात्र सत्य का आश्रय लेना चाहिये| सत्यहीन की पूजा व्यर्थ है| सत्यहीन का जप व्यर्थ है| सत्यहीन तपस्या वैसे ही व्यर्थ है जैसे ऊसर भूमि में बीज बोना|
सत्य की विजय निश्चित रूप से होगी. आसुरी शक्तियों का बोलबाला धीरे धीरे निश्चित रूप से कम से कम होता जाएगा| हमारे पुराणों में जो हमारे प्राचीन काल के इतिहास हैं, लिखा है कि इस पृथ्वी पर अनेक बार असुरों का वर्चस्व हुआ है और भार बढ़ा है| पर अंततः विजय सदा सत्य की ही हुई है|
ReplyDeleteहम हर दृष्टी से सशक्त बनें .... भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक व आध्यात्मिक| हर क्षेत्र में अपना विकास करें| हमारे चारों ओर क्या हो रहा है, उसके प्रति सजग रहें| अपनी स्वयं की और राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करने में हम समर्थ हों| आसुरी शक्तियों से दबें नहीं, उनका प्रतिकार निरंतर करते रहें| भारत की आत्मा निश्चित रूप से विजयी होगी| भगवान हमारे साथ हैं|