(प्रश्न) : हमारा जीवन अशांत क्यों है?
(उत्तर) : जीवन में अशांति कोई रोग नहीं, रोग का एक लक्षण है। कहीं न कहीं हम कोई भूल कर रहे हैं। स्वयं के सच्चिदानंद रूप, यानि आत्म-तत्व की विस्मृति ही हमारी अशांति का एकमात्र कारण है। अन्य कोई कारण नहीं है। हम अपने परमशिव सच्चिदानंद रूप का ही निरंतर ध्यान करेंगे, तो जीवन में कोई अशांति नहीं होगी।
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ध्यान के जिस आसन पर मैं बैठा हूँ, वह मेरा सिंहासन है। जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, वह सब और उससे भी परे जो कुछ भी है, वह मैं स्वयं हूँ। मेरा अस्तित्व ही मेरा साम्राज्य है, जिसका मैं चक्रवर्ती सम्राट हूँ। सम्पूर्ण सृष्टि ही मैं हूँ, अतः कोई कामना नहीं है। मेरे भूत, भविष्य व वर्तमान के सारे पाप-पुण्य, और मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व -- परमात्मा को समर्पित है। मेरा जीवन शांत है। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० अक्तूबर २०२५
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