Tuesday, 4 November 2025

एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ---

 एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ---

.
एक समय में हमें परमात्मा के एक ही आयाम की साधना करनी चाहिए, नहीं तो हमारी साधना एक गोरखधंधा बन जाती है। अंततः लौटकर बापस हमें एक पर ही आना पड़ेगा। ओशो के साहित्य में कहीं पढ़ा है कि हिन्दी भाषा का एक शब्द "गोरखधंधा" इसलिए पड़ा क्योंकि गुरु गोरखनाथ एक के बाद एक सिद्धियों के पीछे पड़े रहे और सृष्टि की सारी सिद्धियाँ उन्होने प्राप्त कर लीं। जब कुछ प्राप्त करने को बचा ही नहीं तब अपने शिवभाव में स्थित होकर उन्होंने सब सिद्धियाँ गंगाजी में विसर्जित कर दीं, और स्वयं शिव हो गये। तंत्र और योग में हमें जो भी ज्ञान उपलब्ध है वह सब उनके या उनकी परंपरा के सिद्ध योगियों से प्राप्त है।
.
गुरु गोरखनाथ का जन्म आचार्य शंकर से भी बहुत पहले हुआ था। आचार्य शंकर का जन्म ईसा मसीह से ५०९ वर्ष पूर्व हुआ था। अंग्रेज़ इतिहासकारों ने हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिये आचार्य शंकर का जन्म आठवीं सदी में और गोरखनाथ का जन्म ग्यारहवीं सदी में बताया है। मुझे एक बहुत बड़े महात्मा ने बताया है कि आचार्य शंकर के समक्ष गुरु गोरखनाथ स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने आचार्य शंकर को श्रीविद्या (श्रीललितामहात्रिपुरसुंदरी) की दीक्षा दी। मैं अपनी अंतर्प्रज्ञा से भी यह बात सत्य मानता हूँ।
.
मेरे एक घनिष्ठ मित्र हैं जो बड़े अच्छे और रहस्यमय साधक हैं, कई बार मैं उनसे आध्यात्मिक विषयों पर परामर्श भी करता हूँ। शिक्षा से वे एक इंजीनियर हैं, लेकिन उनकी बहुत गहरी दखल तंत्र-मंत्र में है, योग में भी है, और आयुर्वेद में भी। कई दुर्लभ औषधियों की उन्होने खोज की है और कुछ अप्रचलित चिकित्सा पद्धतियों की भी। तंत्र-मंत्र के अनेक प्रयोग उन्होंने स्वयं पर ही सफलतापूर्वक किये हैं। योग-साधना में भी बहुत गहराई है उनमें। मैं उनसे भी एक ही बात कहता हूँ कि एक ही दिशा में डटे रहो, लेकिन उनका स्वभाव कुछ अलग ही है।
.
मुझे गर्व है कि पूरे भारत में मेरे बहुत अच्छे आध्यात्मिक मित्र हैं। मुझे उन पर गर्व है।
२२ अक्तूबर २०२५

No comments:

Post a Comment