हमारे मन में छिपी विषयासक्ति ही हमारे सारे संतापों का कारण है। इसके निवारण के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में दो उपाय बतलाए हैं -- अभ्यास और वैराग्य। विवेक विचार से उत्पन्न हुआ स्वभाविक वैराग्य हमें परमात्मा की ओर ले जाता है, और निराशा व दुःख से उत्पन्न हुआ वैराग्य हमें बापस संसार में ले आता है। अतः अभ्यास करते रहें। दुःख से उत्पन्न हुए वैराग्य की ओर ध्यान न दें। अपना मन केवल भगवान में ही लगायें। आगे के सारे द्वार खुल जायेंगे। निःस्पृह होना भी वैराग्य है।
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वैराग्य उत्पन्न हो तो किसी भी तरह का दिखावा न करें और न बिना सोच विचार के कोई निर्णय लें। भावुकता एक धोखा है, भावुकता से बचें। अपने पास क्या साधन हैं, और हम उनका क्या सदुपयोग कर सकते हैं इस पर विचार अवश्य करें। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
१४ अक्तूबर २०२५
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