"हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिः नाम !!" ---
.
उथल-पुथल भरे इस वर्तमान समय की सबसे बड़ी व्यक्तिगत समस्या भगवान के प्रति परम प्रेम को बनाये रखना है। सारा वातावरण ही विपरीत है, लेकिन इसमें हिम्मत नहीं हारनी है। कुछ दिन एकांत में ही रहना पड़े तो भी स्वीकार है।
.
हमारे जीवन का मुख्य लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति यानि परमात्मा का साक्षात्कार करना है। ध्यान-मुद्रा में ध्यान के आसन पर बैठकर दृष्टिपथ भ्रूमध्य में स्थिर कर के प्रत्येक आती हुई सांस के साथ अपनी ज्योतिर्मय चेतना का विस्तार सम्पूर्ण सृष्टि के अनंत विस्तार में करते रहें। सारी सृष्टि आप में, और आप सारी सृष्टि में है। वास्तव में आप नहीं, स्वयं भगवान श्रीहरिः ही यह साधना कर रहे हैं। आप को तो उनमें पूर्णतः समर्पित होना है। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है। अपने भौतिक शरीर को भूल जाइये। ध्यान केवल सर्वव्यापी भगवान श्रीहरिः का ही हो। आप यह भौतिक शरीर नहीं, भगवान श्रीहरिः के साथ एक हैं, जो यह सारी सृष्टि बन गये हैं। पूर्ण या अर्ध खेचरी मुद्रा में बैठकर श्रीमद्भगवद्गीता के आठवें अध्याय में बताई हुई विधि से मूर्धा में प्रणव का जप करते रहें। जिस दिन भगवान की परम कृपा से श्रीमद्भगवद्गीता का पंद्रहवाँ अध्याय पुरुषोत्तम योग समझ में आ जायेगा (यह निज बुद्धि से कभी भी समझ में नहीं आयेगा) उस दिन यह मान लेना कि आप सही मार्ग पर अग्रसर हैं। तब जैसे पृथ्वी चंद्रमा को लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है, वैसे ही आप भी सभी को साथ लेकर परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर होंगे। आप यह भौतिक शरीर नहीं, स्वयं परमात्मा की अनंत चेतना हैं। मंगलमय शुभ कामनाएँ। आपका जीवन कृतार्थ और कृतकृत्य हो। हरिः ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
१५ अक्तूबर २०२५
No comments:
Post a Comment