Tuesday, 4 November 2025

आध्यात्मिक साधना परमात्मा से "कुछ प्राप्ति" के लिए नहीं, परमात्मा को अपने सर्वस्व के पूर्ण समर्पण, और परमात्मा के साथ एक होने हेतु होती है --- .

आध्यात्मिक साधना परमात्मा से "कुछ प्राप्ति" के लिए नहीं, परमात्मा को अपने सर्वस्व के पूर्ण समर्पण, और परमात्मा के साथ एक होने हेतु होती है ---

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हमें "पूर्णता" का ही चिंतन, मनन और ध्यान करना चाहिये। कुछ पाने की आकांक्षा हमारा अज्ञान है। केवल परमात्मा में ही मोक्ष, मुक्ति और स्वतन्त्रता है। एक क्षण के लिए भी परमात्मा को न भूलें, निरंतर उनका अनुस्मरण (Recollection) करते रहें। गीता में भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
(तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर युध्य च। मयि अर्पित मन बुद्धि: माम् एव एष्यसि असंशय॥)
अर्थात् -- इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहर्न्मानुस्मरण।
यः प्रयति त्यजन्देहं स याति परमं गतिम्॥८:१३॥"
(ॐ इत्येकक्षरं ब्रह्म व्याहारं मम अनुस्मरण। यः प्रयाति त्यजं देहं स याति परमं गतिम्॥)
अर्थात् -- जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है॥
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
और कुछ भी अन्य इस समय लिखने योग्य नहीं है। भगवान का अनुस्मरण (Recollection) हर समय करते रहें। यही पूर्णता का द्वार है। पूर्णता केवल परमात्मा में हैं, केवल परमात्मा ही पूर्ण हैं। जैसे मिठाई खाने से मुँह मीठा होता है वैसे ही परमात्मा का स्मरण करने से जीवन आनंदित रहता है। जीवन उद्देश्यहीन न हो। एकमात्र उद्देश्य है जीवन में परमात्मा का अवतरण। अन्य सब बातें व्यर्थ और समय की बर्बादी है। जिस की आज्ञा से यह सारी सृष्टि चल रही है, उसके साथ एक होकर ही हम असत्य और अंधकार की शक्तियों को पराभूत कर सकते हैं। बीच में कोई कामना नहीं आनी चाहिए।
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
२३ अक्तूबर २०२५

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