सिर्फ प्रेम, प्रेम, और प्रेम, अन्य कुछ भी नहीं .....
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भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मांगना उनका अपमान है| जब हम भगवान के प्रेममय रूप का ध्यान करते हैं तब जिस आनंद की अनुभूति होती है वह आनंद अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता| वह आनंद अनुपम और अतुल्य है| यह बात करने का नहीं, अनुभव का विषय है| अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रभु को प्रेम करो, और उनसे उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मत चाहो| जो आनंद, संतुष्टि और तृप्ति उनको प्रेम करने और उनकी उपस्थिति के आभास से मिलती है, वह इस सृष्टि में अन्य कहीं भी नहीं मिल सकती| उसके आगे अन्य सब कुछ गौण है| जब उनका प्रेम मिल गया तो सब कुछ मिल गया| अन्य कोई अपेक्षा मत रखिये|
हम सब के ह्रदय में वह प्रेम जागृत हो, सभी को शुभ मंगल कामनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मई २०१८
पुनश्च: --- भगवान एक रस हैं जिसे चखते रहो और आनंद लो. वे एक प्रवाह हैं जिन्हें स्वयं के माध्यम से निरंतर प्रवाहित होने दो. उनके सिवा कोई अन्य है ही नहीं. वे अनिर्वचनीय परमप्रेम हैं, जिनके प्रेम में स्वयं को विसर्जित कर दो.
!! ॐ ॐ ॐ !!
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