Monday, 12 May 2025

मैंने तो तुम्हारे चरणों में आश्रय माँगा था, पर तुम ने तो अपने ह्रदय में ही मुझे बसा दिया ---

 हे, प्रियतम प्रभु ,

मैंने तो तुम्हारे चरणों में आश्रय माँगा था, पर तुम ने तो अपने ह्रदय में ही मुझे बसा दिया|
यह सृष्टि तुम्हारे मन का एक स्वप्न मात्र है| तुम्हारे इस स्वप्न में मेरा अब और कोई पृथक अस्तित्व न हो|
मैं, अपनी पृथकता यानि मेरापन, सारे संचित कर्मफल, सारी कमियाँ, अच्छाइयाँ, बुराईयाँ, अवगुण, गुण, पाप व पुण्य तुम्हें ही बापस अर्पित कर रहा हूँ|
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मुझ में इतनी क्षमता नहीं है कि अब और कोई साधना कर सकूँ|
कुछ करना है तो वह अब तुम्हीं करोगे| मेरे सारे अधूरे कार्य भी अब तुम्हें ही पूरे करने होंगे|
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तुम्हारे इस दिव्य परम प्रेम के अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
मैं स्वयं ही तुम्हारा परम प्रेम हूँ और सदा रहूँ|
"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद् भद्रं तन्न आ सुव॥" ॐ ॐ ॐ ||
१२ मई २०१६

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