Monday, 12 May 2025

मैं परमशिव हूँ। शिवोहं शिवोहं ॥ अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ !!

 मैं परमशिव हूँ। शिवोहं शिवोहं ॥ अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ !!

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अपनी पूर्णता यानि परमशिवत्व में जागृति ही जीवन है, कोई खोज नहीं। परम शिवत्व ही हमारी शाश्वत जिज्ञासा और गति है। हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारे मन का लोभ और गलत विचार हैं। जिसे हम खोज रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं।
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जीवन में यदि किसी से मिलना-जुलना ही है तो अच्छी सकारात्मक सोच के लोगों से ही मिलें, अन्यथा परमात्मा के साथ अकेले ही रहें। हम परमात्मा के साथ हैं तो सभी के साथ हैं, और सर्वत्र हैं।
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भगवान ने हमें विवेक दिया है, जिसका उपयोग करते हुए अपनी वर्तमान परिस्थितियों में जो भी सर्वश्रेष्ठ हो सकता है, वह कार्य निज विवेक के प्रकाश में करें।
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सदा यह भाव रखें कि यह सम्पूर्ण विश्व मेरा ही विस्तार, और मेरा ही संकल्प है। जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, और जो कुछ भी दृष्टि से परे हैं, वह सब मैं हूँ। मैं सम्पूर्ण अस्तित्व और उसकी पूर्णता हूँ। मैं परमशिव हूँ। शिवोहं शिवोहं ॥ अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ !!
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निर्वाण षटकम् ---
मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं, न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु: चिदानंद रूपः शिवोहम् शिवोहम् ||१||
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः, न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु, चिदानंदरूप: शिवोहम् शिवोहम् ||२||
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ, मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः, चिदानंदरूप: शिवोहम् शिवोहम् ||३|
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता, चिदानंद रूप: शिवोहम् शिवोहम् ||४||
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:, पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं, चिदानंद रूप: शिवोहम् शिवोहम् ||५||
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो, विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:, चिदानंद रूप: शिवोहम् शिवोहम् ||६||
(इति श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम् सम्पूर्णं)
१२ मई २०२४

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