वर्तमान इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध का कारण और उसका समाधान ---
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कल से इज़राइल और फिलिस्तीन के मध्य वर्तमान युद्ध पर हजारों की संख्या में ट्वीट हो रहे हैं ट्वीटर पर, यूट्यूब पर पचासों वीडियो आ रहे हैं, टीवी चैनलों पर अनेक बकासुर योद्धा रौद्र रूप में भयंकर वाक्युद्ध कर रहे हैं, अनेक सनसनीखेज समाचार आ रहे हैं, लेकिन वास्तविकता को बताया नहीं जा रहा है। सत्य को जान बूझ कर छिपाया जा रहा है।
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वर्तमान में जो युद्ध हो रहा है, वह ईरान का इज़राइल के विरुद्ध एक छद्म युद्ध है। इस समय फिलिस्तीन की औकात नहीं है कि वह इज़राइल से युद्ध कर सके, क्योंकि लगभग सभी अरब देशों ने फिलिस्तीन को सहायता देना बंद कर रखा है, और सभी अरब देशों ने इज़राइल से अपने संबंध सामान्य कर लिए हैं। पिछले एक वर्ष से फिलिस्तीन को शस्त्रों की आपूर्ति ईरान कर रहा है।
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अंतर्राष्ट्रीय मामलों के ऊपर नित्य लेख लिखने वाली गेटस्टोन इंस्टीट्यूट ने अपने आज के लेख में लिखा है ---
--- Were it not for Iran's financial and military aid, the Palestinian terrorist groups would not have been able to attack Israel with thousands of rockets and missiles.
In the past, Iran used its proxy in Lebanon, Hezbollah, to attack Israel. Iran is now using its Palestinian proxies to achieve its goal of eliminating Israel and killing Jews. This is a war not only between Israel and the Palestinian terrorist groups. Rather, it is a war waged by Iran against Israel. ---
उपरोक्त लेख को लिखने वाला भी एक प्रसिद्ध निष्पक्ष अरब पत्रकार है।
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इज़राइल और फिलिस्तीन का विवाद सौ वर्ष पुराना हो गया है। इसका समाधान यही है कि फिलिस्तीन के पास जितनी जमीन है, उसी को अंतर्राष्ट्रीय सीमा मानकर फिलिस्तीन इस युद्ध को समाप्त घोषित कर दे, और आतंकवादी गतिविधियां पूरी तरह समाप्त कर दे। इसके अतिरिक्त अन्य कोई समाधान नहीं है।
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प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय हिन्दू सैनिकों को युद्ध में चारे की तरह झौंक कर ब्रिटेन ने तुर्की की सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) को हराकर, उसका विखंडन कर दिया था। युद्ध के दौरान ही जब फिलिस्तीन पर तुर्की का अधिकार था, अंग्रेजों ने भारतीय हिन्दू सिपाहियों को लेकर फिलिस्तीन पर हमला किया और फिलिस्तीन को यरूशलम के साथ अपने अधिकार में ले लिया। उस समय फिलिस्तीन में अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब बसे हुए थे। दोनों के बीच तनाव तब शुरू हुआ जब मित्र राष्ट्रों के समुदाय ने यहूदी लोगों के लिए फिलिस्तीन में इज़राइल नाम का एक Home Land स्थापित करने का निर्णय किया।
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यहूदियों की मान्यता के अनुसार फिलिस्तीन उनके पूर्वजों की पवित्र भूमि है, और अब यही उनका घर होना चाहिए। फिलिस्तीनी अरब भी इस्लाम आने से पूर्व यहूदी ही थे। लेकिन मुसलमान बनने के बाद वे यहूदियों से शत्रुता और घृणा रखने लगे। फिलिस्तीनी अरबों के लिए यह उनका देश था। सन १९२० से द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ती तक यूरोप में यहूदियों का भयंकर नर-संहार हुआ था, उस नर-संहार से बचे प्रायः सभी यहूदी भागकर अपनी एक मातृभूमि की चाह में फिलिस्तीन आ गए। सन १९४७ में संयुक्त राष्ट्र संघ में फिलिस्तीन का विभाजन कर में उसे यहूदियों और अरबों के अलग-अलग राष्ट्रों में बाँटने का निर्णय हुआ, और यरुशलम को एक अंतरराष्ट्रीय नगर बनाया गया। लेकिन अरब पक्ष ने इसको खारिज कर दिया।
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इसके बाद की कहानी और युद्धों का तो सबको पता है। बड़ी भयंकर मारकाट और लड़ाइयाँ हुई हैं। उन्हें मैं लिखना नहीं चाहता। जो लिखने की बात है वह तो लिख दी है।
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अब भविष्य में इज़राइल और ईरान में भयानक निर्णायक युद्ध होगा जिसमें या तो ईरान ही बचेगा या इज़राइल। यह विश्वयुद्ध का कारण होगा और महा भयंकर विनाश होगा। यह युद्ध भारत से दूर हो, यही मेरी प्रार्थना है।
कृपा शंकर
१२ मई २०२१
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