Monday, 12 May 2025

हम अपने स्वधर्म की रक्षा करें ---

 हम अपने स्वधर्म की रक्षा करें ---

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हम शाश्वत आत्मा हैं। आत्मा की अभीप्सा (Aspiration) और स्वधर्म -- परमात्मा की प्राप्ति है। बाकी सब इसी का विस्तार है। यह विचार ही राष्ट्र-निर्माण करता है।
आसुरी शक्तियों से संघर्ष में स्वधर्म ही हमारी रक्षा कर सकता है, राज्य-सत्ता नहीं। हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। "धर्मो रक्षति रक्षितः" --यह वाक्य मनुस्मृति और महाभारत में आता है।
गीता में भगवान का आश्वासन है ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥४०॥
अर्थात् -- इसमें क्रमनाश और प्रत्यवाय दोष नहीं है। इस धर्म (योग) का अल्प अभ्यास भी महान् भय से रक्षण करता है॥
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।
अर्थात् -- सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है॥
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मुझे ऐसा आभास होता है कि अगले कुछ वर्षों में विश्व की अधिकांश जनसंख्या नष्ट हो जाएगी। बहुत कम मनुष्य इस पृथ्वी पर बचेंगे। रक्षा उन्हीं की होगी जो ईश्वर की चेतना में रहेंगे। धर्म की पुनःप्रतिष्ठा होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
१३ मई २०२३

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