शिवो भूत्वा शिवं यजेत् .....
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श्रुति भगवती कहती है ..... ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ यानि शिव बनकर शिव की उपासना करो| जिन्होने वेदान्त को निज जीवन में अनुभूत किया है वे तो इस तथ्य को समझ सकते हैं, पर जिन्होने गीता का गहन स्वाध्याय किया है वे भी अंततः इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे| तत्व रूप में शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है| गीता के भगवान वासुदेव ही वेदान्त के ब्रह्म हैं| वे ही परमशिव हैं|
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मेरे इस जीवन का अब संध्याकाल है, बहुत कम समय बचा है, करने को तो बहुत कुछ बाकी है, पर अब कुछ भी स्वाध्याय करने का समय नहीं है| अतः सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया है| जो करेंगे सो वे ही करेंगे, स्वयं पर कोई भी भार लेने में असमर्थ हूँ| अब सारी उपासना, उपास्य और उपासक वे ही हैं| स्वयं का पता नहीं जो सांसें चल रही हैं, वे कब तक चलेंगी| अब तो ये सांसें भी वे ही ले रहे हैं| जन्म-जन्मांतरों के सारे कर्म, उनके फल, सारी बुराइयाँ/अच्छाइयाँ सब कुछ उन्हें बापस सौंप दिया है| स्वयं को भी उन्हें समर्पित कर दिया है| मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है| जो उन की इच्छा है वह ही मेरी इच्छा है|
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जीवन का मूल उद्देश्य है ..... शिवत्व की प्राप्ति| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस का उत्तर है ..... कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव का ध्यान| यह किसी कामना की पूर्ती के लिए नहीं है बल्कि कामनाओं के नाश के लिए है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है --- कामना और इच्छा की समाप्ति|
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"शिव" का अर्थ शिवपुराण के अनुसार ..... जिन से जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में संव्याप्त है, वे शिव हैं| जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं|
अमरकोष के अनुसार 'शिव' शब्द का अर्थ मंगल एवं कल्याण होता है|
विश्वकोष में भी शिव शब्द का प्रयोग मोक्ष में, वेद में और सुख के प्रयोजन में किया गया है|
अतः शिव का अर्थ हुआ आनन्द, परम मंगल और परम कल्याण| जिसे सब चाहते हैं और जो सबका कल्याण करने वाला है वही ‘शिव’ है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ||
शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर बावलिया
झुंझुनूं (राजस्थान)
२७ जनवरी २०२०
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श्रुति भगवती कहती है ..... ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ यानि शिव बनकर शिव की उपासना करो| जिन्होने वेदान्त को निज जीवन में अनुभूत किया है वे तो इस तथ्य को समझ सकते हैं, पर जिन्होने गीता का गहन स्वाध्याय किया है वे भी अंततः इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे| तत्व रूप में शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है| गीता के भगवान वासुदेव ही वेदान्त के ब्रह्म हैं| वे ही परमशिव हैं|
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मेरे इस जीवन का अब संध्याकाल है, बहुत कम समय बचा है, करने को तो बहुत कुछ बाकी है, पर अब कुछ भी स्वाध्याय करने का समय नहीं है| अतः सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया है| जो करेंगे सो वे ही करेंगे, स्वयं पर कोई भी भार लेने में असमर्थ हूँ| अब सारी उपासना, उपास्य और उपासक वे ही हैं| स्वयं का पता नहीं जो सांसें चल रही हैं, वे कब तक चलेंगी| अब तो ये सांसें भी वे ही ले रहे हैं| जन्म-जन्मांतरों के सारे कर्म, उनके फल, सारी बुराइयाँ/अच्छाइयाँ सब कुछ उन्हें बापस सौंप दिया है| स्वयं को भी उन्हें समर्पित कर दिया है| मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है| जो उन की इच्छा है वह ही मेरी इच्छा है|
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जीवन का मूल उद्देश्य है ..... शिवत्व की प्राप्ति| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस का उत्तर है ..... कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव का ध्यान| यह किसी कामना की पूर्ती के लिए नहीं है बल्कि कामनाओं के नाश के लिए है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है --- कामना और इच्छा की समाप्ति|
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"शिव" का अर्थ शिवपुराण के अनुसार ..... जिन से जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में संव्याप्त है, वे शिव हैं| जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं|
अमरकोष के अनुसार 'शिव' शब्द का अर्थ मंगल एवं कल्याण होता है|
विश्वकोष में भी शिव शब्द का प्रयोग मोक्ष में, वेद में और सुख के प्रयोजन में किया गया है|
अतः शिव का अर्थ हुआ आनन्द, परम मंगल और परम कल्याण| जिसे सब चाहते हैं और जो सबका कल्याण करने वाला है वही ‘शिव’ है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ||
शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर बावलिया
झुंझुनूं (राजस्थान)
२७ जनवरी २०२०
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