किस किस से मिलें? किस किस के पीछे-पीछे भागें? कहाँ-कहाँ जाएँ? कोल्हू का बैल उम्रभर घूमता है और वहीं-का-वहीं रहता है| कोल्हू के बैल की भांति भटकते भटकते कई जन्म बीत गए, पाया कि वहीं के वहीं है, कहीं भी नहीं पहुंचे| सारे स्थान तो उनके ही हैं| वे वहाँ हैं तो यहाँ भी हैं| कितने लोगों के पीछे पीछे भागे| किसी से कुछ भी नहीं मिला| सब में तो वे ही हैं| अब यह भटकाव समाप्त हो गया है| परमप्रिय तो सदा ही साथ थे, जहाँ भी मैं हूँ वहीं वे स्वयं भी हैं| वे उन्हीं से मिलाते हैं, जो उनकी याद दिलाते हैं| वे वहीं ले जाते हैं जहां उन का स्मरण होता है| कूटस्थ ब्रह्म के रूप में वे सदा समक्ष हैं| उनको छोड़कर जाने को अब कोई स्थान नहीं बचा है| आप की जय हो|
जिन के स्मरण मात्र से भगवान की भक्ति जागृत हो जाए, जिनके समक्ष जाते ही सुषुम्ना चैतन्य हो जाए, हृदय परमप्रेममय हो जाए, और हम स्वतः ही नतमस्तक हो जाएँ, वे ही सच्चे संत हैं| उन्हीं का सत्संग सार्थक है|
जो सिर्फ भगवान की बातें करते हैं, पर जिन में अहंकार, लोभ और असत्य व्यक्त हो रहा हो, उन का संग विष की तरह छोड़ देना चाहिए| वे संत नहीं हो सकते|
ॐ ॐ ॐ ||
२ फरवरी २०२०
जिन के स्मरण मात्र से भगवान की भक्ति जागृत हो जाए, जिनके समक्ष जाते ही सुषुम्ना चैतन्य हो जाए, हृदय परमप्रेममय हो जाए, और हम स्वतः ही नतमस्तक हो जाएँ, वे ही सच्चे संत हैं| उन्हीं का सत्संग सार्थक है|
जो सिर्फ भगवान की बातें करते हैं, पर जिन में अहंकार, लोभ और असत्य व्यक्त हो रहा हो, उन का संग विष की तरह छोड़ देना चाहिए| वे संत नहीं हो सकते|
ॐ ॐ ॐ ||
२ फरवरी २०२०
जब परमात्मा की अनुभूति हो जाये तब इधर-उधर की भागदौड़ बंद हो जानी चाहिए. उन्हीं की चेतना में रहें|
ReplyDeleteकिसी ने मुझ से पूछा कि मेरा सिद्धान्त, मत और धर्म क्या है?
मेरा स्पष्ट उत्तर था .....
मेरा कोई सिद्धान्त नहीं है, मेरा कोई मत या पंथ नहीं है, मेरा कोई धर्म नहीं है, और मेरा कोई कर्तव्य नहीं है| मेरा समर्पण सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के लिए है| स्वयं परमात्मा ही मेरे सिद्धान्त, मत/पंथ, धर्म और कर्तव्य हैं| उनसे अतिरिक्त मेरा कोई नहीं है| वे ही मेरे सर्वस्व हैं| मेरा कोई पृथक अस्तित्व भी नहीं है| यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति||
जिन से प्रेम होता है उन को हम प्रेमवश उलाहना भी दे दें तो इसमें कोई बुराई नहीं है| हम भगवान को भी प्रेमवश उलाहना दे ही सकते हैं कि तुम्हारा अकेले में मन नहीं लगता, इसी लिए तुम ने इस सृष्टि को और हमें बनाया है| हमारा प्रश्न यह है कि इस सृष्टि को तुम ने हमारे लिए बनाया है, या हमें इस सृष्टि के लिए बनाया है?
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि वे ही हम सब और ये सब बन गए हैं| यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि भगवान भी हमारी ही तरह बोर होते हैं और उन्हें भी हमारे प्रेम की भूख लगती है| अब हमारा दायित्व बनाता है कि हम उन्हें बोर भी न होने दें और भूखा भी न रखें|
ॐ तत्सत् ||