हमारा अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) ही कुरुक्षेत्र का मैदान है| यही धर्मक्षेत्र है और यही कुरुक्षेत्र है| महाभारत का युद्ध यहाँ निरंतर चल रहा है| एक ओर भगवान श्रीकृष्ण हैं, और दूसरी ओर दुर्योधन की सेना जिसे जीत पाना दुर्धर्ष है| हम किन के साथ रहें इस की हमें पूरी छूट है| यहाँ धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है|
अब तो स्थिति ऐसी है कि न तो धर्म से मुझे कोई मतलब है और न ही अधर्म से| सत्य और असत्य, पाप और पुण्य .... ये सब महत्वहीन हो गए हैं| जब से भगवान श्रीकृष्ण हमारे समक्ष हुए हैं तभी से उनके प्रबल आकर्षण से सब कुछ उन ही का हो गया है| कुछ भी अपने पास नहीं बचा है| जैसे एक शक्तिशाली चुंबक लौह धातुओं को अपनी ओर खींच लेता है वैसे ही सब कुछ उन्होने अपनी ओर खींच लिया है| ऐसा प्रबल आकर्षण है उन सच्चिदानंद का| कहीं कोई भेद नहीं है| वे ही पारब्रहम् हैं, वे ही परमशिव हैं और वे ही आदिशक्ति हैं| वे साक्षात् हरिः हैं| अब अपना कहने को कुछ भी नहीं है, सब कुछ उन्हें समर्पित है| उनके सिवाय अन्य कुछ है ही नहीं| कहीं कोई दूरी नहीं है| कूटस्थ में वे नित्य बिराजमान है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१ फरवरी २०२०
कृपा शंकर
१ फरवरी २०२०
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