आध्यात्म में सर्वोपरी महत्व कुछ होने का है, करने का नहीं| हम कुछ होने के लिए ही कुछ करते हैं| योगसूत्रों व आगम ग्रन्थों के अनुसार हम वही हो जाते हैं जैसा हम निरंतर सोचते है| निरंतर परमात्मा का चिंतन करने से परमात्मा के गुण हमारे में आ जाते हैं| तभी शिव-संकल्पों पर ज़ोर दिया गया है| ऐसे ही लोगों के साथ मेलजोल रखें जो सदा परमात्मा के बारे में सोचते हैं| उन लोगों का साथ विष की तरह छोड़ दें जो परमात्मा से विमुख हैं| उनसे मिलना तो क्या उनकी और आँख उठाकर देखना भी बड़ा दुःखदायी होता है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जनवरी २०२०
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जनवरी २०२०
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