Friday, 27 December 2019

मैं एक सलिल-बिन्दु हूँ तो आप महासागर हो -----

मैं एक सलिल-बिन्दु हूँ तो आप महासागर हो -----
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मैं नहीं चाहता कि मैं किसी पर भार बनूँ ..... न तो जीवन में और न ही मृत्यु में| मैं नित्य मुक्त हूँ| मेरे परमप्रिय परमात्मा की इच्छा ही मेरा जीवन है| मेरा आदि, अंत और मध्य ..... सब कुछ परमात्मा स्वयं हैं| यह शरीर-महाराज रूपी पिंड भी परमात्मा को अर्पित है| मेरे सारे बुरे-अच्छे कर्मफल, पाप-पुण्य, और सारे कर्म परमात्मा को अर्पित हैं| मुझे कोई उद्धार नहीं चाहिए| उद्धार तो कभी का हो चुका है| कोई किसी भी तरह की मुक्ति भी नहीं चाहिए, क्योंकि मैं तो बहुत पहिले से ही नित्यमुक्त हूँ|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||
अर्थात मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है||
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श्रुति भगवती कहती है ..... "एको हंसो भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्नि: सलिले संनिविष्ट:| तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेSयनाय||"
इस ब्रह्मांड के मध्य में जो एक ..... >>> "हंसः" <<< यानि एक प्रकाशस्वरूप परमात्मा परिपूर्ण है; जल में स्थितअग्नि: है| उसे जानकर ही (मनुष्य) मृत्यु रूप संसार से सर्वथा पार हो जाता है| दिव्य परमधाम की प्राप्ति के लिए अन्य मार्ग नही है||
(यह संभवतः अजपा-जप की साधना है जिसका निर्देश कृष्ण यजुर्वेद के श्वेताश्वतरोपनिषद में दिया हुआ है)
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गुरुकृपा से इस सत्य को को समझते हुए भी यदि मैं अपने बिलकुल समक्ष परमात्मा को समर्पित न हो सकूँ तो मेरा जैसा अभागा अन्य कोई नहीं हो सकता| हे प्रभु, मैं तो निमित्तमात्र आप का एक उपकरण हूँ| इसमें जो प्राण, ऊर्जा, स्पंदन, आवृति और गति है, वह तो आप स्वयं ही हैं| मैं एक सलिल-बिन्दु हूँ तो आप महासागर हो| मैं जो कुछ भी हूँ वह आप ही हो| ॐ ॐ ॐ ||
ॐ तत्सत् |
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१९

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