(प्रश्न). हिन्दू कौन है? .....
(उत्तर). मेरी व्यक्तिगत निजी मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति के अन्तःकरण में परमात्मा के प्रति प्रेम और श्रद्धा-विश्वास है, जो आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म, कर्मफलों के सिद्धान्त, व ईश्वर के अवतारों में आस्था रखता है, वह हिन्दू है, चाहे वह विश्व के किसी भी भाग में रहता है और उसकी राष्ट्रीयता कुछ भी है|
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क्या हिन्दू माँ-बाप के घर जन्म लेने से ही हम हिंदु हैं? क्या दीक्षा लेकर ही कोई हिन्दू हो सकता है? या किसी दीक्षा की आवश्यकता ही नहीं है? इन सब प्रश्नों का उत्तर देना मेरे बौद्धिक सामर्थ्य से परे है| हिन्दू एक बहुत ही व्यापक नाम है जो विदेशियों ने दिया है| भारत के प्राचीन शास्त्रों में केवल धर्म और अधर्म का ही नाम है| धर्म को शास्त्रों ने परिभाषित किया है और धर्म के लक्षण बताए गए हैं, पर कहीं भी उसे सीमित नहीं किया गया है| धर्म को सीमाओं में नहीं बांध सकते| इस विषय पर अनेक स्वनामधन्य मनीषियों द्वारा इतना अधिक लिखा गया है कि उसका एक लाखवाँ भाग भी मैं नहीं लिख सकता| अतः यहाँ मैं अपनी निजी मान्यता की ही बात कर रहा हूँ|
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यह मेरी अपनी निजी दृढ़ मान्यता है इसलिए किसी विवाद का प्रश्न ही नहीं है| मैं अपना मार्गदर्शन गीता से लेता हूँ| वेदों को समझना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है| श्रुति-स्मृतियों व आगम शास्त्रों का मुझे कोई ज्ञान नहीं है| जो भी मेरा हृदय और अंतरात्मा कहती है उसे ही मैं मानता हूँ|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को नमन|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०१९
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क्या हिन्दू माँ-बाप के घर जन्म लेने से ही हम हिंदु हैं? क्या दीक्षा लेकर ही कोई हिन्दू हो सकता है? या किसी दीक्षा की आवश्यकता ही नहीं है? इन सब प्रश्नों का उत्तर देना मेरे बौद्धिक सामर्थ्य से परे है| हिन्दू एक बहुत ही व्यापक नाम है जो विदेशियों ने दिया है| भारत के प्राचीन शास्त्रों में केवल धर्म और अधर्म का ही नाम है| धर्म को शास्त्रों ने परिभाषित किया है और धर्म के लक्षण बताए गए हैं, पर कहीं भी उसे सीमित नहीं किया गया है| धर्म को सीमाओं में नहीं बांध सकते| इस विषय पर अनेक स्वनामधन्य मनीषियों द्वारा इतना अधिक लिखा गया है कि उसका एक लाखवाँ भाग भी मैं नहीं लिख सकता| अतः यहाँ मैं अपनी निजी मान्यता की ही बात कर रहा हूँ|
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यह मेरी अपनी निजी दृढ़ मान्यता है इसलिए किसी विवाद का प्रश्न ही नहीं है| मैं अपना मार्गदर्शन गीता से लेता हूँ| वेदों को समझना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है| श्रुति-स्मृतियों व आगम शास्त्रों का मुझे कोई ज्ञान नहीं है| जो भी मेरा हृदय और अंतरात्मा कहती है उसे ही मैं मानता हूँ|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को नमन|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०१९
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