जीवन में संतुष्टि और तृप्ति कैसे मिले? जीवन में प्राप्त करने योग्य क्या है? जीवन में क्या करें और क्या न करें? ......
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इन जैसे प्रश्नों ने बहुत उलझाये रखा है| इन सब का उत्तर भगवान से यही मिला है कि अपना छोटे से छोटा हर काम खूब मन लगाकर करो, किसी भी काम को आधे-अधूरे मन से मत करो| हर काम अपनी सर्वश्रेष्ठ लगन से और अपनी पूर्णता से करो|
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इससे जीवन में मुझे वास्तव में बड़ी संतुष्टि और तृप्ति मिली है| जो काम आधे-अधूरे मन से किए, वे सब इस जीवन में असंतोष और कुंठा के कारण बने| गीता के कुछ श्लोकों ने जीवन को नई दिशा दी और उत्साह बनाए रखा| जीवन की हर समस्या का समाधान और हर प्रश्न का उत्तर मुझे गीता में मिला|
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"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि|१८:५८||
"नेहाभिक्रम-नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पम् अप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्धय्-असिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
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भगवान ने इतनी बड़ी बात कह दी है, अब और कुछ है ही नहीं| भगवान "हैं", यहीं "हैं", सर्वत्र "हैं", इसी समय "हैं", सर्वदा "हैं", और वे ही वे "हैं"| अन्य कोई है ही नहीं| पृथकता का बोध एक भ्रम है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१९
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इन जैसे प्रश्नों ने बहुत उलझाये रखा है| इन सब का उत्तर भगवान से यही मिला है कि अपना छोटे से छोटा हर काम खूब मन लगाकर करो, किसी भी काम को आधे-अधूरे मन से मत करो| हर काम अपनी सर्वश्रेष्ठ लगन से और अपनी पूर्णता से करो|
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इससे जीवन में मुझे वास्तव में बड़ी संतुष्टि और तृप्ति मिली है| जो काम आधे-अधूरे मन से किए, वे सब इस जीवन में असंतोष और कुंठा के कारण बने| गीता के कुछ श्लोकों ने जीवन को नई दिशा दी और उत्साह बनाए रखा| जीवन की हर समस्या का समाधान और हर प्रश्न का उत्तर मुझे गीता में मिला|
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"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि|१८:५८||
"नेहाभिक्रम-नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पम् अप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्धय्-असिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
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भगवान ने इतनी बड़ी बात कह दी है, अब और कुछ है ही नहीं| भगवान "हैं", यहीं "हैं", सर्वत्र "हैं", इसी समय "हैं", सर्वदा "हैं", और वे ही वे "हैं"| अन्य कोई है ही नहीं| पृथकता का बोध एक भ्रम है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१९
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