Friday, 27 December 2019

१९७१ में हम युद्ध में विजयी रहे पर कूटनीति में हार गए ....

हम युद्ध में विजयी रहे पर कूटनीति में हार गए| हम विजयी हैं और सदा विजयी ही रहेंगे -----
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आज एक गर्व का दिन है| आज से 48 वर्ष पूर्व 16 दिसम्बर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को पूर्ण रूप से हराकर पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को बंदी बना कर बांग्लादेश का निर्माण किया था| इसी दिन की स्मृति में विजय दिवस मनाया जाता है|
हम युद्ध में जीते तो अवश्य पर वार्ता की टेबल पर पाकिस्तान की कूटनीति से हार गए| पाकिस्तान अपने सैनिकों के बदले कुछ भी देने को तैयार था| हम उनके बदले पाक-अधिकृत कश्मीर का सौदा कर सकते थे, लाहोर भी ले सकते थे| पर अपने भोलेपन (या मूर्खता) के कारण अपने लगभग 55 युद्धबंदियों को भी पाकिस्तान से नहीं छुड़ा पाये और पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को सही सलामत बिना एक भी खरौंच भी आए छोड़कर पाकिस्तान पहुंचा दिया| भारतीय युद्धबंदियों को पाकिस्तान ने बहुत ही यातना दे देकर मार दिया| यह हमारी कूटनीतिक पराजय थी|
फिर भी यह हमारी सैनिक विजय थी जिस पर हमें गर्व है| उस युद्ध में मारे गए सभी भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि | जो भी उस समय के पूर्व सैनिक जीवित हैं, उन सब को नमन | भारत माता की जय |
१६ दिसंबर २०१९

1 comment:

  1. (साभार श्री अरुण उपाध्याय)
    अहिंसा और आत्महत्या-
    पाकिस्तान के पास भारत से अधिक परमाणु बम हैं और उनके उपयोग की धमकी वहां के नेताओं से बार बार आ रही है। उसके जबाब में भारत के नेता केवल वहां जाकर अपनी भक्ति दिखा आते हैं जिसके बाद हमेशा मार खाते हैं। जिस कारगिल युद्ध को विजय कहा जा रहा है उसमें १०,००० से अधिक भारतीय सैनिक मारे गये, कई अपंग हो गये। अरबों रुपये बरबाद हुये तथा बोफोर्स तोप के गोले के लिये पूरी दुनिया में भीख मांगते रहे। इसके बदले भारत को एक इंच भी जमीन नहीं मिली। क्या इस विजय से बुरी कोई पराजय हो सकती है? पाकिस्तान निश्चित रूप से भारत के विरुद्ध परमाणु बम का प्रयोग करेगा-इसमें कोई सन्देह नहीं रहना चाहिये। दुनिया का कोई देश हमारी मदद नहीं करेगा-उनकी जितनी भी खुशामद करलें। परमाणु बम से जितने लोग मर सकते हैं, उससे अधिक भारत में पिछले १३०० वर्षों से हर शताब्दी में लोग मरते रहे हैं। महमूद गजनवी ने १०००-१०२० के बीच १५ लाख खोखरों की हत्या की थी, वे भाग कर असम के कोकराझार तक आ गये। कन्नौज, जाजपुर (१३६५), थानेश्वर आदि पर हर आक्रमण में ५-१० लाख लोग मारे गये और गुलाम बना कर बेचे गये। भारत विभाजन में कम से कम ३० लाख लोग मारे गये और १८० लाख भारत में भाग आये। तिब्बत में चीन द्वारा ३० लाख मारे गये और भारत में दलाई लामा सहित १० लाख से अधिक शरणार्थी हैं। १९७१ में बंगलादेश में ३० लाख हिन्दू मारे गये और १ करोड़ शरणार्थी आये। क्या उनके नाम पर १ एकड़ जमीन भी ले पाये? बिना किसी शर्त के ९३ हजार बन्दियों को छोड़ दिया जबकि भारत के हजारों निर्दोष आज भी पाकिस्तान की जेलों में पड़े हुये हैं। यह कैसी जीत थी? कश्मीर में ही १९९० में ३० हजार हिन्दू मारे गये और ७ लाख से अधिक शरणार्थी भाग आये। उनको शरणार्थी कहने का भी साहस भारत सरकार में नहीं है।
    क्या केवल आत्महत्या ही गौरव है? शहीद होने के लिये तैयार रहना, वीरता है किन्तु केवल मरना लक्ष्य नहीं है शत्रुओं को मारना भी जरूरी है। अंग्रेज अपने दलालों के हाथ जब से शासन दे कर गये हैं, यह मान लिया गया है कि भारत या पाकिस्तान के सभी हिन्दू केवल मरने योग्य हैं, विशेषकर भारतीय सैनिक। भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा था-हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं, जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। (२/३७) बिना लड़े केवल मरने को नपुंसकता कहा है-कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थित। अनार्य जुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥२॥ क्लैव्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥३॥ (अध्याय २) निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः (३/३०) परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् (४/८)- दुष्टों की खुशामद के लिये उनका पैर छूने के लिये नहीं लिखा है, उनका विनाश करने से ही सज्जन बच सकते हैं। मयैवैते निहताः पूर्वमेव, निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् (११/३३) द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्। मया हतांस्त्वं जहि माव्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् (३४)-द्रोण, भीष्म आदि सबको मारने के लिये कहा है।
    इसके उत्तर में कैसी सत्य अहिंसा नीति है? अभी सत्य का अर्थ केवल जालसाजी कर धोखा देना है। जैव रसायन की किताबों में पढ़ाया जाता है कि १९०९ में जर्मनी द्वारा नील का रासायनिक उत्पादन होने के कारण उसकी खेती बन्द हुयी। इस बहाने गान्धी को नेता बनाने के लिये अंग्रेजों के आदेश पर नील जमीन्दारों के विरुद्ध आन्दोलन हुआ। १९२० में तुर्की के खलीफा का समर्थन कर खिलाफत आरम्भ हुआ, जिसमें भारत का कोई लेना देना अहीं था। खलीफा की खुशामद को खलीफात के बदले खिलाफत किया। फिर उसका अनुवाद असहयोग आन्दोलन हुआ। वायसराय इरविन के समय उनके कार्य पर टिप्पणी हुयी कि नमक कर से जितनी आमदनी होती है, उसक १० गुणा खर्च नमक विभाग पर हो रहा है। इरविन के आदेश पर जिसे गान्धी इरविन समझौता कहा गया-नमक सत्याग्रह शुरु हुआ जिसका कभी भारत के लिये महत्त्व नहीं था। द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सेना में २७ लाख भरती करवाने के लिये गान्धी को सेना में सार्जेण्ट का पद मिला, शान्तिदूत के नाम पर महात्मा की उपाधि भी मिली। अंग्रेजों की जी जान से खुशामद करने के बाद अचानक भारत छोड़ो आन्दोलन उनके आदेश पर किया गया। पहले कहा कि भारत विभाजन उनकी लाश पर होगा, उसके तुरत बाद नेहरू को प्रधान मन्त्री बनवाने के लिये विभाजन की कोशिश करने लगे। ३० लाख हिन्दुओं की हत्या शान्ति का चरम उदाहरण था, उसमें मदद के लिये पाकिस्तान को ५५ करोड़ की सहायता दी गयी। पर नोआखाली में १८ लोगों की हत्या हिंसा थी।
    इसके परिणाम स्वरूप केवल भारतीय लोगों के मरने को वीरता कही गयी है, शत्रुओं को मारने की कोई बात नहीं होती.

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