परमात्मा की उपस्थिती का आभास ही आनंद है .....
जिस आनंद को हम अपने से बाहर खोज रहे हैं, वह आनंद तो हम स्वयं हैं| संसार में हम विषयभोगों में, अभिमान में, और इच्छाओं की पूर्ति में,सुख की खोज करते हैं, पर उस से तृप्ति और संतोष नहीं मिलता| संसार में सुख की खोज अनजाने में आनंद की ही खोज है|
भगवान की अनन्य भक्ति और समर्पण से ही हमें आनंद प्राप्त हो सकता है| अन्य कोई स्त्रोत नहीं है| सार की बात है कि आनंद कुछ पाना नहीं, बल्कि स्वयं का होना है| हम आनंद को कहीं से पा नहीं सकते, स्वयं आनंदमय हो सकते हैं| हमारा वास्तविक अस्तित्व ही आनंद है|
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१९
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१९
रात्रि को सोने से पूर्व खूब खूब गहरा ध्यान कर के निश्चिन्त होकर जगन्माता की गोद में सो जाएँ| प्रातःकाल परमात्मा का चिंतन करते हुए ही उठें| दिन का प्रारम्भ परमात्मा के ध्यान से ही करें| पूरे दिन परमात्मा का अनुस्मरण करते रहें| कुसंग का सर्वदा त्याग, सत्संग और प्रेरणास्पद सद्साहित्य का स्वाध्याय करते रहें| अपने विचारों का ध्यान रखें| हम जो कुछ भी हैं वह अपने अतीत के विचारों से हैं| हम भविष्य में वही होंगे जैसे वर्त्तमान में हमारे विचार हैं|
ReplyDeleteएक झूठा भ्रम और अहंकार है स्वयं के कुछ होने का| हम कुछ भी नहीं हैं| जो भी हैं वे भगवान स्वयं ही हैं| इस शरीर की नासिकाओं से भगवान स्वयं ही साँसे ले रहे हैं, इन साँसों से ही यह सृष्टि और संसार है| सांस बंद हुई उसी क्षण यह संसार भी समाप्त| वे ही साध्य हैं, वे ही साधना हैं, और साधक भी वे ही हैं|
ReplyDeleteभगवान भी अपनी इस लीला में भटक कर स्वयम् से ही विमुख हो रहे हैं| कब तक भटकेंगे? बहुत देर हो चुकी है| अब और नहीं छिप सकेंगे| स्वयं को व्यक्त करना ही होगा|
ॐ ॐ ॐ ||
तीर्थंकर महावीर की शिक्षाओं में से एक है कामना रहित निर्विचार भाव को प्राप्त करना| हर विचार एक संकल्प बन कर घनीभूत हो निश्चित रूप से व्यक्त होता है| हमारे हर विचार या तो शुभ हों या फिर वे जन्म ही न लें| यह एक गंभीर और विचारणीय विषय है जिस पर हम विचार करें|
ReplyDeleteहे अशांत चंचल मन, शांत होकर निरंतर गुरु-चरणों व परमशिव का ध्यान ब्रह्मरंध्र से परे अनंताकाश के सूर्यमण्डल में करो| कहीं भी इधर-उधर मत भागो| वहीं मेरे प्रियतम परमात्मा हैं| जहाँ भी मेरे प्रियतम हैं वहाँ कोई अज्ञान, अन्धकार और असत्य नहीं ठहर सकता| मैं उनकी पूर्णता और प्रेम हूँ, कहीं कोई भेद नहीं है| ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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