जहाँ आसुरी शक्तियाँ अपना तांडव कर रही है, वहीं समय के साथ बदली हुई परिस्थितियों में अब एक समय ऐसा भी आ गया है कि धीरे धीरे मनुष्य की चेतना ऊर्ध्वमुखी हो रही है| धीरे धीरे पूरे विश्व में जागरूक क्रिश्चियन मतावलंबी यानि जीसस क्राइस्ट के अनुयायी स्वेच्छा से सनातन धर्म का अनुसरण आरंभ कर देंगे| पश्चिमी जगत में करोड़ों लोग नित्य नियमित ध्यान साधना और प्राणायाम करने लगे हैं| लाखों लोग नित्य नियमित रूप से गीता का स्वाध्याय करते हैं| "कूटस्थ चैतन्य" या "श्रीकृष्ण चैतन्य" शब्द को "Christ Consciousness" के रूप में कहना बहुत लोकप्रिय हो रहा है| वास्तव में Christ किसी का नाम नहीं है, Christ का अर्थ है ...."अभिषेक", जिसका अभिषेक हुआ हो (anointed one)|
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जीसस क्राइस्ट को मैं एक व्यक्ति नहीं, एक चेतना मानता हूँ जो वास्तव में
"श्रीकृष्ण चैतन्य" यानि "कूटस्थ चैतन्य" ही थी| उस चेतना की अनुभूति गहन ध्यान में होती है| वर्तमान ईसाई मत तो एक चर्चवाद है, जिस का क्राइस्ट से कोई लेनदेन नहीं है| अजपा-जप, आज्ञाचक्र और उस से ऊपर अनंत में असीम ज्योतिर्मय ब्रह्म के ध्यान, नादानुसंधान,और जपयोग से जिस चेतना का प्रादुर्भाव होता है वह "कूटस्थ चैतन्य" यानि "Christ Consciousness" है| यह चेतना ही भविष्य में मानवता को जोड़ेगी और विश्व को एक करेगी| संसार का बीज "कूटस्थ" है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९
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जीसस क्राइस्ट को मैं एक व्यक्ति नहीं, एक चेतना मानता हूँ जो वास्तव में
"श्रीकृष्ण चैतन्य" यानि "कूटस्थ चैतन्य" ही थी| उस चेतना की अनुभूति गहन ध्यान में होती है| वर्तमान ईसाई मत तो एक चर्चवाद है, जिस का क्राइस्ट से कोई लेनदेन नहीं है| अजपा-जप, आज्ञाचक्र और उस से ऊपर अनंत में असीम ज्योतिर्मय ब्रह्म के ध्यान, नादानुसंधान,और जपयोग से जिस चेतना का प्रादुर्भाव होता है वह "कूटस्थ चैतन्य" यानि "Christ Consciousness" है| यह चेतना ही भविष्य में मानवता को जोड़ेगी और विश्व को एक करेगी| संसार का बीज "कूटस्थ" है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९
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