यह वसुंधरा न तो किसी की हुई है और न किसी की होगी .....
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यह सृष्टि, यह संसार, यह वसुंधरा न तो किसी की हुई है और न कभी किसी की होगी| पता नहीं कितने ही बड़े-बड़े भूमिचोरों, आतताइयों, तस्करों और अन्यायी शासकों ने अपने आतंक, अत्याचार और कुटिलता से; व कितने ही चक्रवर्ती सम्राटों ने अपनी वीरता से इस वसुंधरा पर अपने अधिकार का प्रयास किया है| वसुंधरा तो वहीं है, पर वे अब कहाँ हैं? सब काल के गाल में समा गए| काल यानि मृत्यु पर विजय तो सिर्फ मृत्युंजयी परमशिव ही दिला सकते हैं जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ| ध्यान हम उन्हीं का करें जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ हो|
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शाश्वत प्रश्न तो यह है कि हम कौन हैं, और कौन हमारा है? इन प्रश्नों पर अपनी पूरी चेतना से मैंने बहुत अधिक विचार किया है| जो दिखाई दे रहा है, वह ही सत्य नहीं है, हमारी दृष्टि-सीमा से परे भी अज्ञात बहुत कुछ है| पता नहीं कितने ही अंधकारमय, कितने ही ज्योतिर्मय और कितने ही हिरण्य लोक हैं| यह वसुंधरा तो इस भौतिक जगत में ही अति अकिंचन महत्वहीन है| इस भौतिक जगत से परे भी बहुत अधिक विशाल एक सूक्ष्म जगत है, उस से भी परे कारण जगत है और उस से भी परे हिरण्यलोक हैं| यह सृष्टि अनंत है| वर्षों पहिले की बात है| एक बार बैठे हुए मैं ध्यान कर रहा था कि अचानक ही चेतना इस शरीर से निकल कर एक अंधकारमय लोक में चली गई जहाँ सिर्फ अंधकार ही अंधकार था, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| एक अंधेरी सुरंग की तरह का खड़ा हुआ बहुत विशाल लोक था| ऐसा लग रहा था कि यहाँ और भी बहुत अधिक लोग हैं जो अत्यधिक कष्ट में हैं| कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था| अचानक ही किसी ने बहुत ही कड़क आवाज़ में कहा कि "तुम यहाँ कैसे आ गए? निकलो यहाँ से बाहर", फिर उस ने धक्का मार कर वहाँ से बलात् बाहर फेंक दिया| उसी क्षण बापस इस शरीर में आ गया| भगवान से प्रार्थना की कि ऐसा कोई अनुभव दुबारा न हो| फिर दुबारा कोई वैसा अनुभव नहीं हुआ और कभी होगा भी नहीं| ध्यान में जब चेतना एक अतिन्द्रीय अवस्था में थी तब दो-तीन बार सूक्ष्म जगत के कुछ महात्माओं ने अपना आशीर्वाद अवश्य दिया है| उन्हीं के आशीर्वाद से शक्तिपात की अनुभूति हुई और हृदय में भक्ति जागृत हुई| यह एक गोपनीय विषय है जिस पर एक अज्ञात प्रेरणावश चर्चा कर बैठा| अब और नहीं करूँगा| कोई मुझ से इस विषय पर चर्चा भी न करे| मैं कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करूंगा|
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इस सृष्टि के पीछे एकमात्र सत्य सृष्टिकर्ता परमात्मा ही हमारे हो सकते हैं, अन्य कोई या कुछ भी नहीं| किसी की अपेक्षाओं की पूर्ति हम नहीं कर सकते, और न कोई हमारी अपेक्षाओं पर ही खरा उतर सकता है| परमात्मा की अनंतता ही हमारा अस्तित्व है और स्वयं परमात्मा ही हमारे हैं| अन्य कोई नहीं| उन परमात्मा को हम परमशिव, ब्रह्म, पारब्रह्म, नारायण, वासुदेव, विष्णु, भगवान, आदि आदि किसी भी नाम से संबोधित करें, कोई फर्क नहीं पड़ता| एकमात्र सत्य वे ही हैं, बाकी सब मिथ्या है|
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
१९ दिसंबर २०१९
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यह सृष्टि, यह संसार, यह वसुंधरा न तो किसी की हुई है और न कभी किसी की होगी| पता नहीं कितने ही बड़े-बड़े भूमिचोरों, आतताइयों, तस्करों और अन्यायी शासकों ने अपने आतंक, अत्याचार और कुटिलता से; व कितने ही चक्रवर्ती सम्राटों ने अपनी वीरता से इस वसुंधरा पर अपने अधिकार का प्रयास किया है| वसुंधरा तो वहीं है, पर वे अब कहाँ हैं? सब काल के गाल में समा गए| काल यानि मृत्यु पर विजय तो सिर्फ मृत्युंजयी परमशिव ही दिला सकते हैं जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ| ध्यान हम उन्हीं का करें जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ हो|
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शाश्वत प्रश्न तो यह है कि हम कौन हैं, और कौन हमारा है? इन प्रश्नों पर अपनी पूरी चेतना से मैंने बहुत अधिक विचार किया है| जो दिखाई दे रहा है, वह ही सत्य नहीं है, हमारी दृष्टि-सीमा से परे भी अज्ञात बहुत कुछ है| पता नहीं कितने ही अंधकारमय, कितने ही ज्योतिर्मय और कितने ही हिरण्य लोक हैं| यह वसुंधरा तो इस भौतिक जगत में ही अति अकिंचन महत्वहीन है| इस भौतिक जगत से परे भी बहुत अधिक विशाल एक सूक्ष्म जगत है, उस से भी परे कारण जगत है और उस से भी परे हिरण्यलोक हैं| यह सृष्टि अनंत है| वर्षों पहिले की बात है| एक बार बैठे हुए मैं ध्यान कर रहा था कि अचानक ही चेतना इस शरीर से निकल कर एक अंधकारमय लोक में चली गई जहाँ सिर्फ अंधकार ही अंधकार था, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| एक अंधेरी सुरंग की तरह का खड़ा हुआ बहुत विशाल लोक था| ऐसा लग रहा था कि यहाँ और भी बहुत अधिक लोग हैं जो अत्यधिक कष्ट में हैं| कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था| अचानक ही किसी ने बहुत ही कड़क आवाज़ में कहा कि "तुम यहाँ कैसे आ गए? निकलो यहाँ से बाहर", फिर उस ने धक्का मार कर वहाँ से बलात् बाहर फेंक दिया| उसी क्षण बापस इस शरीर में आ गया| भगवान से प्रार्थना की कि ऐसा कोई अनुभव दुबारा न हो| फिर दुबारा कोई वैसा अनुभव नहीं हुआ और कभी होगा भी नहीं| ध्यान में जब चेतना एक अतिन्द्रीय अवस्था में थी तब दो-तीन बार सूक्ष्म जगत के कुछ महात्माओं ने अपना आशीर्वाद अवश्य दिया है| उन्हीं के आशीर्वाद से शक्तिपात की अनुभूति हुई और हृदय में भक्ति जागृत हुई| यह एक गोपनीय विषय है जिस पर एक अज्ञात प्रेरणावश चर्चा कर बैठा| अब और नहीं करूँगा| कोई मुझ से इस विषय पर चर्चा भी न करे| मैं कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करूंगा|
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इस सृष्टि के पीछे एकमात्र सत्य सृष्टिकर्ता परमात्मा ही हमारे हो सकते हैं, अन्य कोई या कुछ भी नहीं| किसी की अपेक्षाओं की पूर्ति हम नहीं कर सकते, और न कोई हमारी अपेक्षाओं पर ही खरा उतर सकता है| परमात्मा की अनंतता ही हमारा अस्तित्व है और स्वयं परमात्मा ही हमारे हैं| अन्य कोई नहीं| उन परमात्मा को हम परमशिव, ब्रह्म, पारब्रह्म, नारायण, वासुदेव, विष्णु, भगवान, आदि आदि किसी भी नाम से संबोधित करें, कोई फर्क नहीं पड़ता| एकमात्र सत्य वे ही हैं, बाकी सब मिथ्या है|
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
१९ दिसंबर २०१९
आध्यात्म में बिना ईश्वर की कृपा के कुछ भी प्राप्त नहीं होता| ईश्वर की कृपा का मार्ग भी भक्ति, सत्संग, स्वाध्याय और साधना से ही खुलता है| बिना पुरुषार्थ के कुछ नहीं होता| स्वयं का कल्याण स्वयं के प्रयासों से ही हो सकता है, किसी अन्य के नहीं| सार की बात एक ही है कि अपने हृदय का पूर्ण प्रेम परमात्मा को बिना किसी शर्त के अर्पित कर दो| फिर जो भी होगा वह ठीक ही होगा|
ReplyDeleteओम् नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च||
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि र्व्यशेम देवहितं यदायुः
स्वस्ति न इन्द्रो वॄद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||