ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि .....
----------------------------------
झूठ और कपट जहाँ हैं वहाँ परमात्मा का अनुग्रह नहीं हो सकता, और सत्य में प्रतिष्ठित हुए बिना परमात्मा का बोध नहीं होता| सत्य में प्रतिष्ठित हुए बिना कोई साधना सिद्ध भी नहीं हो सकती| वेदाध्ययन कराते हुए आचार्य अपने शिष्यों को को ऋत (उचित एवं निष्ठापरक कथन) और सत्य बोलने का उपदेश और आदेश देता है| तैत्तिरीय उपनिषद् के शान्ति मन्त्र (जो कौषितकीब्राह्मणोपनिषद् तथा मुद्गलोपनिषद् में भी है) में यह परिलक्षित होता है......
----------------------------------
झूठ और कपट जहाँ हैं वहाँ परमात्मा का अनुग्रह नहीं हो सकता, और सत्य में प्रतिष्ठित हुए बिना परमात्मा का बोध नहीं होता| सत्य में प्रतिष्ठित हुए बिना कोई साधना सिद्ध भी नहीं हो सकती| वेदाध्ययन कराते हुए आचार्य अपने शिष्यों को को ऋत (उचित एवं निष्ठापरक कथन) और सत्य बोलने का उपदेश और आदेश देता है| तैत्तिरीय उपनिषद् के शान्ति मन्त्र (जो कौषितकीब्राह्मणोपनिषद् तथा मुद्गलोपनिषद् में भी है) में यह परिलक्षित होता है......
"ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम् । अवतु वक्तारम् ।"
.
इसी उपनिषद् में जो उपदेश दिए हैं, उनमें "सत्यं वद" यानी सत्य बोलो यह सबसे पहिला उपदेश है ....
.
इसी उपनिषद् में जो उपदेश दिए हैं, उनमें "सत्यं वद" यानी सत्य बोलो यह सबसे पहिला उपदेश है ....
"वेदमनूच्याचार्योऽन्तेवासिनमनुशास्ति । सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजानन्तुं मा व्यवच्छेसीः । सत्यान्न प्रमदितव्यम् । धर्मान्न प्रमदितव्यम् । कुशलान्न प्रमदितव्यम् । भूत्यै न प्रमदितव्यम् । स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् ।।"
"देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम् । मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव । अतिथिदेवो भव । यान्यनवद्यानि कर्माणि । तानि सेवितव्यानि । नो इतराणि । यान्यस्माकं सुचरितानि । तानि त्वयोपास्यानि ।।
ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।"
(तैत्तिरीय उपनिषद्, शिक्षावल्ली, अनुवाक ११, मंत्र १ व मन्त्र २).
.
यह विषय "सत्य" इतना विस्तृत है कि 'जैन विश्व भारती' विश्वविद्यालय, में तो इस विषय पर M.A. भी होती है और इस विषय पर अनेक विद्वानों ने PhD भी कर रखी है| इस विषय पर कभी समाप्त न होने वाले लम्बे लम्बे लेख भी लिखे जा सकते हैं| यह समझने का विषय है, अतः इसका समापन यहीं कर रहा हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मई २०१९
"देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम् । मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव । अतिथिदेवो भव । यान्यनवद्यानि कर्माणि । तानि सेवितव्यानि । नो इतराणि । यान्यस्माकं सुचरितानि । तानि त्वयोपास्यानि ।।
ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।"
(तैत्तिरीय उपनिषद्, शिक्षावल्ली, अनुवाक ११, मंत्र १ व मन्त्र २).
.
यह विषय "सत्य" इतना विस्तृत है कि 'जैन विश्व भारती' विश्वविद्यालय, में तो इस विषय पर M.A. भी होती है और इस विषय पर अनेक विद्वानों ने PhD भी कर रखी है| इस विषय पर कभी समाप्त न होने वाले लम्बे लम्बे लेख भी लिखे जा सकते हैं| यह समझने का विषय है, अतः इसका समापन यहीं कर रहा हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मई २०१९
No comments:
Post a Comment