गुरु चरणों में आश्रय और गुरु दक्षिणा क्या है ?
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(ये मेरे निजानुभूतिजन्य व्यक्तिगत विचार हैं). मेरे लिए मेरे गुरु मेरे साथ एक हैं| उन में और मुझ में कोई अंतर नहीं हैं| इस देह में ..... मैं नहीं, वे ही साधना कर रहे हैं| मेरे सारे पाप-पुण्य, अच्छे-बुरे कर्म, और मेरा संपूर्ण अस्तित्व उन्हीं को समर्पित है| वे एक तत्व हैं जो सब प्रकार के नाम और रूपों से परे हैं| अंततः वे एक दिव्य अनुभूति हैं| ध्यान में उन की अनुभूति कूटस्थ में नाद और ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में होती है| इस देह में सांस भी वे ही ले रहे हैं और सारी चेतना उन्हीं की है| मैं और मेरा कुछ भी नहीं है|
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गुरु चरणों में आश्रय :--- सहस्त्रार में उनका गहनतम ध्यान, और चेतना में उन की निरंतर अनुभूति ही गुरु चरणों में आश्रय है| मेरे लिए सहस्त्रार ही श्रीगुरु महाराज के चरण कमल हैं|
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गुरु दक्षिणा :--- अपने अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) का परमप्रेम सहित उनमें यथासंभव निरंतर समर्पण ही मेरे लिए गुरु-दक्षिणा है|
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इस देह रूपी नौका के कर्णधार वे ही हैं| प्रारब्ध कर्मों के फल भुगतने के लिए मैनें यह जन्म लिया| जब यह देह छूट जायेगी तब मेरी कोई पृथकता नहीं है, सब कुछ उन्हीं का है| वे परमात्मा के साथ एक हैं व परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं| मेरा समर्पण उन्हीं के प्रति है|
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"ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्|
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम्, भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि||"
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(ये मेरे निजानुभूतिजन्य व्यक्तिगत विचार हैं). मेरे लिए मेरे गुरु मेरे साथ एक हैं| उन में और मुझ में कोई अंतर नहीं हैं| इस देह में ..... मैं नहीं, वे ही साधना कर रहे हैं| मेरे सारे पाप-पुण्य, अच्छे-बुरे कर्म, और मेरा संपूर्ण अस्तित्व उन्हीं को समर्पित है| वे एक तत्व हैं जो सब प्रकार के नाम और रूपों से परे हैं| अंततः वे एक दिव्य अनुभूति हैं| ध्यान में उन की अनुभूति कूटस्थ में नाद और ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में होती है| इस देह में सांस भी वे ही ले रहे हैं और सारी चेतना उन्हीं की है| मैं और मेरा कुछ भी नहीं है|
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गुरु चरणों में आश्रय :--- सहस्त्रार में उनका गहनतम ध्यान, और चेतना में उन की निरंतर अनुभूति ही गुरु चरणों में आश्रय है| मेरे लिए सहस्त्रार ही श्रीगुरु महाराज के चरण कमल हैं|
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गुरु दक्षिणा :--- अपने अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) का परमप्रेम सहित उनमें यथासंभव निरंतर समर्पण ही मेरे लिए गुरु-दक्षिणा है|
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इस देह रूपी नौका के कर्णधार वे ही हैं| प्रारब्ध कर्मों के फल भुगतने के लिए मैनें यह जन्म लिया| जब यह देह छूट जायेगी तब मेरी कोई पृथकता नहीं है, सब कुछ उन्हीं का है| वे परमात्मा के साथ एक हैं व परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं| मेरा समर्पण उन्हीं के प्रति है|
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"ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्|
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम्, भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि||"
जो ब्रह्मानंदस्वरूप हैं, परम सुख देनेवाले हैं जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं, (सुख, दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वन्द्वों से रहित हैं, आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं, तत्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं, एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं, सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं, भावना से परे हैं, सत्व, रज और तम तीनों गुणों से रहित हैं ऐसे श्री सदगुरुदेव को मैं नमस्कार करता हूँ|
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"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||"
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"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||"
आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजापति (ब्रह्मा) और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) हैं| आपके लिए सहस्र बार नमस्कार, नमस्कार है, पुनः आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है||
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्, आपके लिए अग्रत और पृष्ठत नमस्कार है, हे सर्वात्मन् आपको सब ओर से नमस्कार है| आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं||
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ॐ तत्सत् ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ !
कृपा शंकर
२ जून २०१९
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्, आपके लिए अग्रत और पृष्ठत नमस्कार है, हे सर्वात्मन् आपको सब ओर से नमस्कार है| आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं||
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ॐ तत्सत् ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ ! गुरु ॐ !
कृपा शंकर
२ जून २०१९
ॐ
ReplyDeleteसहस्त्रार में दृष्टी रखकर भगवान का ध्यान करो, सारा भुवन एक शुभ्र ज्योति से भर जाएगा.
जीवन धन्य हो जायेगा.
आत्मा नित्यमुक्त है, सारे बंधन एक भ्रम हैं.
एकमात्र अस्तित्व परमात्मा का ही है, उस से परे अन्य कुछ भी नहीं है.
ॐ ॐ ॐ