सदा सफल हनुमान .....
आज मंगलवार है, हनुमान जी का दिन है| हनुमान जी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें कभी भी असफलता नहीं मिली| असम्भव से असम्भव कार्य भी उन्होंने जो अपने हाथ में लिये वे सदा सफल ही हुए रामचरितमानस में उनकी वन्दना निम्न शब्दों में की गयी है....
"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्|
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि||"
.
वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग आता है कि युद्ध में जब रावण को अपनी पराजय होती दिखाई दी तो उसने ऐसे राक्षसों को युद्ध करने भेजा जो अमर थे| उन्हें कोई नहीं मार सकता था| विभीषण से जब ऐसे राक्षसों के आगमन का पता चला तो सुग्रीव आदि सेनापति हताश हो गए कि इन अमर राक्षसों का वध कैसे करेंगे? हनुमान जी ने भगवान श्रीराम से आज्ञा ली और उन राक्षसों से युद्ध करने निकल पड़े| उन राक्षसों ने कहा कि हे हनुमान, हम अमर हैं, हमें कोई मार नहीं सकता| तुम्हारा कल्याण इसी में है कि तुम सब लोग अपने स्वामी के साथ बापस चले जाओ| हनुमान जी ने कहा कि मैं बापस तो जाऊँगा पर अपनी स्वयं की इच्छा से, तुम्हारी इच्छा से नहीं| अब तुम सब मिलकर मेरे पर आक्रमण करो| जब उन सब राक्षसों ने मिल कर हनुमान जी पर आक्रमण किया तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ का विस्तार किया और सबको अपनी पूंछ में लपेट कर अन्तरिक्ष में ऐसे दैवीय बल से उछाला कि सब आकाश की अनंतता में पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा से बाहर चले गए| वे चले जा रहे थे, चले जा रहे थे, उनकी त्वचा सूख गयी, उनकी देह जल गयी पर वे मर नहीं सकते थे, और बापस पृथ्वी पर लौट भी नहीं सकते थे|
.
"मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं|
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये||"
.
चरण शरण में आय के, धरूं तिहारा ध्यान
संकट से रक्षा करो
संकट से रक्षा करो, पवनपुत्र हनुमान
दुर्गम काज बनाय के, कीन्हें भक्त निहाल
अब मोरी विनती सुनो
अब मोरी विनती सुनो, हे अंजनि के लाल
हाथ जोड़ विनती करूं, सुनो वीर हनुमान
कष्टों से रक्षा करो
कष्टों से रक्षा करो, राम भक्ति देहुँ दान
"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्|
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि||"
.
वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग आता है कि युद्ध में जब रावण को अपनी पराजय होती दिखाई दी तो उसने ऐसे राक्षसों को युद्ध करने भेजा जो अमर थे| उन्हें कोई नहीं मार सकता था| विभीषण से जब ऐसे राक्षसों के आगमन का पता चला तो सुग्रीव आदि सेनापति हताश हो गए कि इन अमर राक्षसों का वध कैसे करेंगे? हनुमान जी ने भगवान श्रीराम से आज्ञा ली और उन राक्षसों से युद्ध करने निकल पड़े| उन राक्षसों ने कहा कि हे हनुमान, हम अमर हैं, हमें कोई मार नहीं सकता| तुम्हारा कल्याण इसी में है कि तुम सब लोग अपने स्वामी के साथ बापस चले जाओ| हनुमान जी ने कहा कि मैं बापस तो जाऊँगा पर अपनी स्वयं की इच्छा से, तुम्हारी इच्छा से नहीं| अब तुम सब मिलकर मेरे पर आक्रमण करो| जब उन सब राक्षसों ने मिल कर हनुमान जी पर आक्रमण किया तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ का विस्तार किया और सबको अपनी पूंछ में लपेट कर अन्तरिक्ष में ऐसे दैवीय बल से उछाला कि सब आकाश की अनंतता में पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा से बाहर चले गए| वे चले जा रहे थे, चले जा रहे थे, उनकी त्वचा सूख गयी, उनकी देह जल गयी पर वे मर नहीं सकते थे, और बापस पृथ्वी पर लौट भी नहीं सकते थे|
.
"मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं|
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये||"
.
चरण शरण में आय के, धरूं तिहारा ध्यान
संकट से रक्षा करो
संकट से रक्षा करो, पवनपुत्र हनुमान
दुर्गम काज बनाय के, कीन्हें भक्त निहाल
अब मोरी विनती सुनो
अब मोरी विनती सुनो, हे अंजनि के लाल
हाथ जोड़ विनती करूं, सुनो वीर हनुमान
कष्टों से रक्षा करो
कष्टों से रक्षा करो, राम भक्ति देहुँ दान
No comments:
Post a Comment