Sunday, 2 June 2019

कश्मीर की समस्या पर एक सामान्य भारतीय की सोच ......

 कश्मीर की समस्या पर एक सामान्य भारतीय की सोच ......
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कुछ दिनों पहिले मैनें दो लेख लिखे थे कि 'कश्मीर की समस्या राजनीतिक नहीं बल्कि मज़हबी है'| इसका समाधान हो सकता है पर चीन, अमेरिका और पश्चिमी देश कभी भी नहीं चाहेंगे कि कश्मीर की समस्या का कोई समाधान हो, क्योंकि इसके पीछे उनके व्यवसायिक और राजनीतिक हित हैं| कश्मीर की समस्या भी वास्तव में नेहरू को मोहरा बनाकर ब्रिटेन व अमेरिका ने ही उत्पन्न की थी|
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कश्मीर की समस्या ब्रिटेन ने अपने ही ख़ास आदमी हमारे प्रथम प्रधान मंत्री श्री नेहरु जी के माध्यम से उत्पन्न की जिनको उन्होंने सत्ता स्थानांतरित की थी| नेहरु जी की कमजोरी एक सुन्दर ब्रिटिश महिला लेडी एडविना माउंटबेटन के प्रति थी, और अन्य सुन्दर महिलाओं के प्रति भी, जिसका अनुचित लाभ ब्रिटेन ने भरपूर उठाया और सता हस्तांतरण के पश्चात भी भारत में लेडी माउंट बेटन के माध्यम से वही हुआ जो ब्रिटेन चाहता था| आजादी के बाद भी भारत पर अप्रत्यक्ष रूप से राज्य लेडी माउंटबेटन का ही था जो वास्तव में ब्रिटेन की गुप्तचर संस्थाओं द्वारा भारत में स्थापित एक ब्रिटिश गुप्तचर थी| नेहरु ने अपनी पत्नी को तो स्विट्ज़रलैंड के एक सेनिटोरियम में भर्ती करा रखा था जिसे उसने कभी नहीं संभाला, और एडविना के साथ उसके प्रेमी गुलाम की तरह रहता था| कटु सत्य तो यह है कि नेहरु और गाँधी दोनों ही लार्ड माउंटबेटन की मुट्ठी में थे और वह चाहे जैसे उनका इस्तेमाल करता था| लार्ड माउंटबेटन ... नेहरू और गाँधी की कोई कद्र नहीं करता था और उन्हें अपना गुलाम ही मानता था|
भारत को लेडी एडविना माउंटबेटन (Countess of Burma, CI, GBE, DCVO, GCStJ) से छुटकारा २१ फरवरी १९६० को मिला जब उसने ब्रिटिश नार्थ बोर्निओ के 'जेस्सोल्टन' (अब मलयेशिया के कोटा किनाबालू) नामक स्थान पर आत्महत्या कर ली जब उसे पता चला कि उस को सिफलिस की लाइलाज बीमारी हो गयी है| हालांकि ब्रिटेन ने यह बात छिपाई और प्रचारित किया कि वह वहाँ सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड के निरीक्षण के के लिए गयी थी जहाँ नींद में स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुई| भारत ने उसके सम्मान में नौसेना का एक फ्रिगेट भी इंग्लैंड भेजा था| चार साल बाद भारत में नेहरु की मृत्यु भी सिफलिस से हो गयी|
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अमेरिका का स्वार्थ यह था की वह पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित में अपना सैनिक अड्डा स्थापित करना चाहता था जहाँ से वह चीन और मध्य एशिया पर दृष्टि रख सके| वह सैनिक अड्डा उसने स्थापित कभी का कर भी लिया था|
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चीन का स्वार्थ एक तो यह था कि कश्मीरी लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र पर उसका पूर्ण अधिकार हो ताकि सिंकियांग और तिब्बत के मध्य दूरी न रहे| और दूसरा यह कि पाक अधिकृत कश्मीर के माध्यम से पकिस्तान होते हुए वह अरब सागर तक पहुँच सके|
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जब १९४८ में भारतीय सेना जीतने लगी तब ब्रिटेन ने नेहरू जी पर दबाव डाल कर युद्धविराम करा कर मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में भिजवाया और जनमत संग्रह का फैसला करवा दिया| जनमत संग्रह का निर्णय सशर्त था कि पहले पकिस्तान पूरा कश्मीर खाली करेगा, फिर जनमत संग्रह संयुक्त राष्ट्र संघ की निगरानी में होगा| अगर पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर खाली करता तो अमेरिका को गिलगिट से अपना सैनिक अड्डा भी हटाना पड़ता जो अमेरिकी हितों के विरुद्ध था| अतः अमेरिका ने सदा पकिस्तान का साथ दिया और भारत को डराने धमकाने के लिए पाकिस्तान का प्रयोग किया| पाकिस्तान ने भारत से जो युद्ध किये हैं वे सब अमेरिका की सहमती और सहायता से ही किये हैं| नेहरू जी को भारतीय सेना से अधिक अंग्रेजों यानि ब्रिटेन पर भरोसा था, अतः सदा उन्होंने वही किया जो ब्रिटेन चाहता था| अनुच्छेद ३७० को संविधान में जोड़ना भी उनकी एक भयानक गलती थी|
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कश्मीर में अल्पसंख्यक सुविधाएँ सिर्फ मुसलमानों को प्राप्त हैं, हिदुओं को नहीं जो वास्तव में अल्प-संख्यक हैं| कश्मीर को अब छः टुकड़ों में बाँट देना चाहिए ..... (१) जम्मू, (२) लद्दाख, (३) कश्मीर घाटी, (४) कश्मीर घाटी से बाहर का क्षेत्र, (५) पाक अधिकृत कश्मीर और (६) चीन अधिकृत कश्मीर| हिन्दुओं और बौद्धों को अल्प-संख्यक की सुविधाएँ दी जाएँ|
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जब तक पकिस्तान और चीन, पाक-अधिकृत कश्मीर को खाली नहीं करते तब तक कश्मीर में जनमत संग्रह नहीं हो सकता| चीन और पाक कभी भी अधिकृत क्षेत्र को खाली नहीं करेंगे| वैसे जनमत संग्रह हो भी जाए तो वह भारत के ही पक्ष में ही होगा क्योंकि पूरे कश्मीर में बहुमत शिया मुसलमानों का है जो पाकिस्तान विरोधी हैं| सिर्फ कश्मीर घाटी में ही सुन्नी बहुमत है|
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कश्मीर में अब भारत सरकार कानूनी रूप से यह तय करे कि कौन अल्प-संख्यक है और कौन बहु-संख्यक| धारा ३७० समाप्त कर सेवानिवृत सैनिको और अन्य सभी समर्थवान भारतीयों को वहाँ बसाया जाए| कश्मीरी हिन्दुओं को एक सुरक्षित क्षेत्र दिया जाये| कश्मीर को विशेष आर्थिक पैकेज न दिए जाएँ| अपना कमाओ और खाओ| तुष्टिकरण की नीति समाप्त हो| अंततः पकिस्तान को तो तोड़ना ही पड़ेगा जो एक दुष्ट राष्ट्र है|
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मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ, एक सामान्य नागरिक हूँ| जैसी मेरी बुद्धि थी और जैसा मुझे समझ में आया वैसा लेख मैनें लिख दिया| बड़े बड़े राजनेता और विशेषज्ञ हैं जो इस मामले को सुलाझायेगे| बाकी जैसी प्रभु की इच्छा|
अब इस विषय पर और कुछ लिखने के लिए मेरे पास नहीं है| आगे और नहीं लिखूंगा| इति| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मई २०१७

1 comment:

  1. किसी भी देश की सीमाएँ सदा एक सी नहीं रहतीं| कोई भी विचारधारा शाश्वत नहीं होती| प्रकृति चाहे तो भूतकाल को भविष्य बना सकती है, और भविष्य को भूतकाल बना सकती है| ईश्वर की इच्छा से कुछ भी बदलाव हो सकता है| विश्व में पता नहीं कितनी आसुरी और दैवीय सत्ताएँ आईं और काल के गाल में समा गईं|

    मेरी दृढ़ आस्था है कि ..... पूरा कश्मीर फिर से एक होगा, वैदिक धर्म की वहाँ पुनर्स्थापना होगी, वर्तमान में पाक-अधिकृत कश्मीर में जाकर नष्ट हो चुकी शारदा पीठ पुनश्च एक दिन वैदिक शिक्षा का केंद्र होगी, कश्मीर का शैव-मत फिर से जागृत होगा, पूरा कश्मीर फिर से वैदिक-धर्मावलंबी होगा|

    यह दिन देखने के लिए हम जीवित रहें या न रहें, इसका महत्व नहीं है| पर ऐसा निश्चित रूप से होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी|

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