मैं द्वैत और अद्वैत -- दोनों की बातें करता हूँ, इससे कोई भ्रमित न हो। ये दोनों मनोभूमियाँ हैं, और दोनों ही सत्य हैं ---
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इस युग में अद्वैतवेदान्त के प्रणेता आचार्य गौड़पाद थे, जिन्होंने "मांडूक्यकारिका" नामक ग्रंथ लिखा है। स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने अपने परमगुरु आचार्य गौड़पाद द्वारा प्रतिपादित अद्वैत वेदांत का समर्थन करते हुए अपनी सर्वप्रथम टीका उनके ग्रंथ "मांडूक्यकारिका" पर लिखी थी।
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आचार्य शंकर स्वयं परम भक्त थे, और भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुंदरी (श्रीविद्या) की आराधना करते थे। ब्रहमसूत्रों, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता की टीका के साथ साथ उन्होने "सौन्दर्यलहरी" नामक दिव्य ग्रंथ की रचना भी की है, जो तंत्र-विद्या के सर्वोत्तम ग्रन्थों में से एक है। आचार्य शंकर एक परम भक्त थे, इसलिए विभिन्न देवी-देवताओं की सबसे अधिक भक्तिमय स्तुतियाँ उन्होने लिखी हैं।
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नवीनतम गणनाओं के अनुसार आचार्य शंकर का जन्म जीसस क्राइस्ट से ५०८ वर्ष पूर्व हुआ था। उनका देहांत ४७४ BC में हुआ था। नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ का जन्म आचार्य शंकर से भी बहुत पहिले हुआ था।
अंग्रेजों ने भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए भारत का गलत इतिहास लिखवाया।
इस विषय पर एक बहुत बड़े शोध की आवश्यकता है। अंग्रेजों ने आचार्य शंकर का जन्म ईसा की आठवीं शताब्दी में, और गुरु गोरखनाथ जी का जन्म ईसा की ११वीं सदी में बताया है जो गलत है।
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श्रीविद्या कोई रुपया-पैसा कमाने की विद्या नहीं है। आचार्य शंकर जैसे महापुरुष, स्वामी करपात्री जैसे धर्म-सम्राट, व लगभग सभी विरक्त दंडी स्वामी जिसकी उपासना करते हों, क्या वह धन कमाने या आर्थिक समृद्धि की विद्या हो सकती है? अगस्त्य ऋषि और उनकी पत्नी लोपामुद्रा -- श्रीविद्या के उपासक थे। उन्हें इस का ज्ञान भगवान विष्णु के अवतार हयग्रीव ने दिया था। कालखंड में यह विद्या लुप्त हो गई थी जिसे योगियों ने पुनर्जीवित किया और आचार्य शंकर को इसमें दीक्षित किया। आचार्य शंकर ने इस पर "सौन्दर्य लहरी" नामक ग्रन्थ लिखा है। श्रीविद्या कुंडलिनी महाशक्ति के जागरण, सूक्ष्मदेह के मेरुदंडस्थ सभी चक्रों के भेदन, और परमशिव से उनके मिलन की विद्या है। "कुंडलिनी महाशक्ति" और "परमशिव" के मिलन को ही "योग" कहते हैं।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२ मई २०२४
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