Thursday, 1 May 2025

निरंतर परमात्मा का चिंतन ही मेरा कर्म, भक्ति और ज्ञान है ---

निरंतर परमात्मा का चिंतन ही मेरा कर्म, भक्ति और ज्ञान है। इस जीवन में अब एकमात्र आकर्षण परमात्मा का ही रह गया है। किसी भी तरह के वाद-विवाद, दर्शन शास्त्र, और सिद्धांतों में अब कोई रुचि नहीं रही है। जब ईश्वर स्वयं सदा समक्ष हैं, तब अन्य कुछ भी नहीं चाहिए।

मृत्यु के समय हम स्वयं को भगवान की गोद में ही पायेंगे । अब कैसी प्रार्थना? जिनके लिए प्रार्थना करते हैं, वे तो स्वयं यहाँ साक्षात् बिराजमान हैं। मैं उनके साथ एक हूँ। सारे भेद समाप्त हो गए हैं। दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन, सिर्फ आप ही आप रहें, मैं नहीं। रात्रि को सोने से पूर्व भगवान का ध्यान निमित्त भाव से कर के इस तरह सो जाएँ जैसे एक छोटा बालक अपनी माँ की गोद में सो रहा है। अगले दिन प्रातःकाल उठेंगे, तब स्वयं को भगवान की गोद में ही पाएंगे। आप स्वयं को धन्य मानेंगे कि भगवान स्वयं ही आपको याद कर लेते हैं। यदि यही दिनचर्या बनी रहेगी तो मृत्यु के समय भी आप स्वयं को भगवान की गोद में ही पायेंगे।

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समष्टि की सबसे बड़ी सेवा है -- परमात्मा का निरंतर स्मरण !! परमात्मा एक प्रवाह हैं, जिन्हें स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दें। वे एक रस हैं, जिन का रसास्वादन निरंतर करते रहें। अपने हृदय का पूर्ण प्रेम और स्वयं को भी उन्हें समर्पित कर दें। उनसे अन्य कोई है ही नहीं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ मई २०२२

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