Wednesday, 25 December 2019

भगवान की भक्ति बड़ी खतरनाक चीज है .....

भगवान की भक्ति बड़ी खतरनाक चीज है, किसी संक्रामक रोग से भी अधिक| एक बार जो इसके चक्रव्यूह में फँस जाता है वह इस से बाहर कभी नहीं निकल पाता| पानी का जहाज जब किनारे पर होता है तब उस पर कबूतर आदि पक्षी बैठ जाते हैं| जहाज के छूटने के बाद वे पक्षी बापस जमीन पर जाना चाहते हैं, पर चारों ओर पानी ही पानी, कहीं भी जमीन दिखाई नहीं देती, अतः चारों ओर उड़कर बापस जहाज पर आ जाते हैं|
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भगवान भी अपने भक्त के चारों ओर एक ऐसा घेरा डाल देते हैं कि वह जीवन भर उस से बाहर नहीं निकल सकता| भक्त जिधर भी देखता है उधर भगवान ही भगवान दिखाई देते हैं| सूरदास जी ने लिखा है ....
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"मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥
कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।
परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥
जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥"
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जीवात्मा परमात्मा की अंश-स्वरूपा है| उसका विश्रान्ति-स्थल परमात्मा ही है| अन्यत्र उसे सच्ची सुख-शान्ति नहीं मिलती| प्रभु को छोड़कर जो इधर-उधर सुख खोजता है, वह मूढ़ है| कमल-रसास्वादी भ्रमर भला करील का कड़वा फल चखेगा? कामधेनु छोड़कर बकरी को कौन मूर्ख दुहेगा?
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अंतिम बात यह कहना चाहूँगा कि भगवान की भक्ति में कुछ भी नहीं मिलता| जो कुछ पास में है वह भी बापस ले लिया जाता है| यहाँ तो मात्र समर्पण ही समर्पण है| एकमात्र चीज जो मिलती है वह है आनंद और तृप्ति, और कुछ भी नहीं|
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ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ नवम्बर २०१९

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