उपासना सिर्फ परमात्मा की ही होती है|
अपनी वृत्ति को परमात्मा के साथ निरंतर एकाकार करना, यानि अभेदानुसंधान ही उपासना है| इसका शाब्दिक अर्थ है ... पास में बैठना|
अकामना ही तृप्ति है| कामना चित्त का धर्म है और उसका आश्रय अंतःकरण है|
चित्त की वृत्तियाँ ही वे अज्ञान रूपी पाश हैं जो हमें बाँधकर पशु बनाती हैं| जहाँ इनको आश्रय मिलता है उस अंतःकरण के चार पैर हैं .... मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार|.
ज्ञान रूपी खड़ग से इस अज्ञान रूपी पशु का वध ही वास्तविक बलि देना यानि कुर्बानी है, किसी निरीह प्राणी की ह्त्या नहीं|
परमात्मा को पूर्ण समर्पण ही वास्तविक प्रसाद है
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२२ नवंबर २०१९
अपनी वृत्ति को परमात्मा के साथ निरंतर एकाकार करना, यानि अभेदानुसंधान ही उपासना है| इसका शाब्दिक अर्थ है ... पास में बैठना|
अकामना ही तृप्ति है| कामना चित्त का धर्म है और उसका आश्रय अंतःकरण है|
चित्त की वृत्तियाँ ही वे अज्ञान रूपी पाश हैं जो हमें बाँधकर पशु बनाती हैं| जहाँ इनको आश्रय मिलता है उस अंतःकरण के चार पैर हैं .... मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार|.
ज्ञान रूपी खड़ग से इस अज्ञान रूपी पशु का वध ही वास्तविक बलि देना यानि कुर्बानी है, किसी निरीह प्राणी की ह्त्या नहीं|
परमात्मा को पूर्ण समर्पण ही वास्तविक प्रसाद है
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२२ नवंबर २०१९
हम परमात्मा की दृष्टि में क्या हैं? आध्यात्म में महत्व सिर्फ इसी बात का है, अज्ञानतावश की हुई स्वयं की धारणाओं का नहीं|
ReplyDeleteअब तक मुझे तो यही बात समझ में आई है| हम जो भी साधना करते हैं, वह अपने वास्तविक आत्म-स्वरूप में प्रतिष्ठित होने के लिए करते हैं, न कि कुछ प्राप्त करने के लिए| जब भी यह बात समझ में या जाए उसे गाँठ से बाँध लें| जो हम प्राप्त करना चाहते हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| स्वयं से परे कुछ है ही नहीं| अज्ञान के आवरण से परे जाकर आत्मबोध को प्राप्त करने बाद की अवस्था ही कुछ बनना या पाना है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ गुरु ! ॐ ॐ ॐ !
जीवन में हमें जो कुछ भी मिलता है वह हमारी श्रद्धा और विश्वास से ही मिलता है| बिना श्रद्धा और विश्वास के कुछ भी नहीं मिलता| हम जो भी कर्मकांड करते हैं, जो भी साधना या उपासना करते हैं उनकी सफलता हमारी श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर है| बिना श्रद्धा और विश्वास के कभी सफलता नहीं मिलती| भगवान की भक्ति भी पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करें, तभी सफलता मिलेगी|
ReplyDeleteभवानी शङ्करौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ |
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम् ||