Wednesday, 25 December 2019

जहाँ पर भी हम हैं, भगवान को वहीं पर आना होगा ....

जहाँ पर भी हम हैं, भगवान को वहीं पर आना होगा| भगवान हमारे स्वयं में ही व्यक्त होंगे| भगवान कहीं बाहर नहीं, स्वयं में ही मिलेंगे| हमारा शिवत्व स्वयं में ही व्यक्त होगा| अतः इधर-उधर भागना बेकार है|
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शिव तत्व है 'पूर्णता'| पूर्णता ही शिवत्व है| शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है| दोनों एक ही हैं, सिर्फ अभिव्यक्तियाँ पृथक पृथक हैं| शब्द 'स्वयं' से मेरा तात्पर्य हमारे इस शरीर से नहीं है| शरीर तो एक साधन, एक वाहन है जिसे भगवान ने हमें साधना यानि इस लोकयात्रा के लिए दिया है| जो अनंत सर्वव्यापी ज्योतिर्मय चेतना है जिसने इस सारी सृष्टि को चैतन्य कर रखा है, वह हम हैं| उसी का ध्यान करें| पूर्णता शिव में है, जीव में नहीं; पूर्णता शिव में ढूंढें, जीव में नहीं| पूर्णता शिव में ही हो सकती है, मनुष्य में तो कभी भी नहीं| शिव कोई दूसरा नहीं है, हमें स्वयं को ही शिव बनना होगा| मनुष्य शिव रूप में ही पूर्ण है, मनुष्य रूप में नहीं| कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं है, संसार की दृष्टि में वह चाहे कितना भी बड़ा, महान, संत, तपस्वी या महात्मा हो|
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साधना के क्रम अपनी पात्रता पर निर्भर हैं| फिर भी ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर एक ऊनी आसन पर बैठ जाएँ| चाहें तो एक कंबल को ही अपना आसन बना लें| मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो| कमर सदा सीधी हो| यदि सीधे बैठने में कोई कठिनाई हो तो नितंबों के नीचे एक पतली गद्दी रख लीजिये| (पश्चिमोत्तानासन या महामुद्रा जैसे आसनों के नियमित अभ्यास से कमर सदा सीधी रहेगी) दृष्टिपथ भ्रूमध्य में हो| अपनी चेतना को सदा भ्रूमध्य से ऊपर ही रखें, किसी भी तरह का कोई तनाव नहीं हो|
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कुछ देर हठयोग के कुछ प्राणायाम करें| आगे की साधना अपनी अपनी गुरु परंपरानुसार करें| भगवान स्वयं किसी न किसी माध्यम से मार्गदर्शन करेंगे, यह हमारी श्रद्धा और भक्ति पर निर्भर है| जितनी अधिक श्रद्धा-विश्वास और भक्ति (परम-प्रेम) होगी उसी अनुपात में परमात्मा से सहायता प्राप्त होगी| सभी के प्रति सद्भाव रखें, किसी का बुरा न सोचें और किसी का बुरा न करें| हर आती-जाती सांस के साथ, या हर क्षण अपनी श्रद्धा और गुरु-परंपरानुसार जप करें| भगवान निश्चित रूप से मार्गदर्शन करेंगे|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं|आप सब को प्रणाम!
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१९

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